कांग्रेस का चेहरा रिपीट मिशन

Update: 2022-09-07 04:14 GMT
By: divyahimachal
कांग्रेस अपनी उम्मीदवारी बचा रही है या भाजपा से आगे चलते हुए नया घर बना रही है। यह इसलिए कि पार्टी ने आरंभिक तौर पर एक सुरक्षित दीवार खींचते हुए अपने पारंपरिक सेनानियों, पदाधिकारियों तथा वरिष्ठता के आधार पर कुछ नेताओं को आगे किया है। कांग्रेस की दिल्ली मंत्रणा में सजा दरबार अपने पूर्व राज्य अध्यक्षों, राष्ट्रीय सचिवों तथा विधायकों को टिकट के आबंटन में श्रेष्ठ मान रही है। ऐसा समझा जाता है कि पार्टी ने घर के संतुलन में कोई छेड़छाड़ नहीं की है, भले ही फील्ड में तैरती युवा महत्त्वाकांक्षा पीछे रह गई। जाहिर तौर पर अगर 35 से 40 सीटों पर कांग्रेस अपनी स्थिति स्पष्ट कर रही है, तो इसका मनोवैज्ञानिक व सियासी प्रभाव भाजपा पर पड़ेगा, जबकि इससे रूठे मन पाला बदल कर 'आप' के साथ जुड़ सकते हैं। कांग्रेस ने इससे यह भी साबित कर दिया कि चुनावी जंग में वह अपनी पुरातन पृष्ठभूमि को ही अहमियत देगी। पूरे हिमाचल की तस्वीर में कांग्रेस के कई नेता अब खुल कर श्रम साधना व निजी प्रयास को तीव्र कर पाएंगे। यह स्थिति भाजपा के पक्ष में नहीं है, क्योंकि वहां सर्वेक्षणों से भयभीत मोर्चाबंदी में कई नए चेहरे खुद को सियासी गुलाम समझ रहे हैं या उनकी आकुलता बढ़ गई है। जब से भाजपा ने दो-ढाई दर्जन विधायकों के पत्ते काटने की बात कही है, पार्टी के भीतरी घाव रिसने लगे हैं। कमोबेश हर विधायक या कहीं-कहीं मंत्रियों के सामने नए चेहरे अपनी क्षमता का भरपूर इस्तेमाल करने की इच्छा रखते हैं। इस तरह भाजपा के एक बड़े पैनल ने हर विधानसभा क्षेत्र को उम्मीदवारी का अखाड़ा बना दिया है।
ऐसे में अगर कांग्रेस के करीब तीन दर्जन उम्मीदवारों ने शिरकत शुरू कर दी, तो जमीनी समीकरण पार्टी को सुधरने का मौका देंगे। हालांकि कांग्रेस की युवा ब्रिगेड व गैर राजनीतिक परिवारों से आए नेताओं के लिए यह सब्र टूटने का वक्त है और अगर दिल्ली दरबार से उठ कर पार्टी हिमाचल की गलियों में अपनों को न मना सकी, तो आंतरिक असंतोष सदा की तरह घातक ही होगा। आक्रामक भाजपा के सामने कांग्रेस ने बेहद सुरक्षित हथियार थामे हैं। परिचय के हिसाब से कांग्रेस के पास राम लाल ठाकुर, राजेंद्र राणा, आशाकुमारी, राजेश धर्माणी, सुधीर शर्मा, मुकेश अग्रिहोत्री, इंद्रदत्त लखनपाल, सुखविंद्र सुक्खू, हर्षवर्धन चौहान, कुलदीप राठौर, कुलदीप कुमार, अजय महाजन, कुलदीप पठानिया, चंद्र कुमार, विनोद सुल्तानपुरी, राम कुमार, विक्रमादित्य, रघुबीर बाली, अनिरुद्ध सिंह व आशीष बुटेल सरीखे कई नेता अब विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस का डंका जोर-शोर से बजा सकते हैं। इस सूची में अन्य कई चेहरे भी रिपीट हो रहे हैं और एक तरह से पार्टी इनका 'राजतिलक' कर रही है। यह एक बड़ा दांव है जिसे सर्वानुमति से कांग्रेस आगे कर रही है। जाहिर है इसके बरअक्स विरोध के सुर एकत्रित होंगे। ऐसे में पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती कुनबे के भीतर सभी को एकसूत्र में पिरोने तथा एकसाथ चलाने की रहेगी। कांग्रेस के वर्तमान में जीत का अकाल आंतरिक अस्थिरता बढ़ा रहा है और राजनीतिक स्थितियां आपसी द्वंद्व की शिकार हैं। ऐसे में हिमाचल का रथ सजाने के लिए अगर संगठन ने अपने कांटे छांट लिए हैं, तो कुछ हद तक घायल होने से बचा जा सकता है या मरहम लगाने का समय मिल जाएगा। यह दीगर है कि उम्मीदवारी का ताज़ पहनने के बावजूद कांग्रेस के नेताओं को भाजपा की संगठनात्मक ताकत का सामना करना पड़ेगा। अमृतमहोत्सव की रौनक में सत्ता ने अपने समर्थकों व फरमाबरदारों की नब्ज पर हाथ रखते हुए, सरकार विरोधी लहरों को छांटना शुरू किया है, तो इसके सामने कांग्रेस की अपनी पैरवी कहां से शुरू होगी, यह देखना बाकी है। हाल फिलहाल उम्मीदवारी के दांवपेच के बाहर कांग्रेस अपनी इबारत लिख रही है, लेकिन भाजपा के भीतर प्रत्याशी घोषित होने के दांवपेंच अशांत हैं।

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