छिलकों की छाबड़ी : आना मानसून का समय पर

Update: 2023-07-13 18:54 GMT
 
इन दिनों राजनीतिक हलकों में इस बात को लेकर काफी चिंता है कि इस बार मानसून समय पर आ रहा है। गोया मानसून को समय पर नहीं आना चाहिए और यदि आए भी तो सरकारी स्वीकृति से आए, वरना मानसून की कोई जरूरत ही नहीं है। पार्टी कार्यकर्ता से लेकर मंत्री-मुख्यमंत्री सब परेशान हैं कि मानसून समय पर क्यों आ रहा है। मानसून आ गया तो अकाल और सूखे का क्या होगा? मुख्यमंत्री मिले तो मैंने कहा-‘लीजिए साब, इस बार मानसून समय पर आ रहा है!’ मुख्यमंत्री बौखला गए-‘यह क्या कह रहे हो। इस देश में कुछ भी समय पर नहीं हो रहा, फिर यह मानसून मरा समय पर क्यों आ रहा है। कुछ करो यार मानसून को टालने के उपाय।’ मैं बोला-‘जनता मानसून लाने के लिए हरिकीर्तन कर रही है और आप उसे टालना चाहते हैं। मेरी समझ में नहीं आता आप इतने परेशान क्यों हैं मानसून से। मानसून का समय है तो वह आएगा ही।’ मुख्यमंत्री के चेहरे पर निराशा के बादल छा गए, आंखों में उदासी की घटाएं घुमड़ीं। वे बोले-‘सच तो यह है कि केन्द्र सरकार को नब्बे करोड़ की सहायता के लिए कहा हुआ है। वर्षा आ गई तो भला यह राशि कैसे मिलेगी? राहत सामग्री का वितरण पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए अनिवार्य है। जहां तक असंतुष्टों का सवाल है, सूखे व अकाल के बहाने वे भी मंत्री बने इस सूखे-अकाल के सहारे चुप्पी साधे हुए हैं। मानसून आते ही सब सिर उठा लेंगे।’
‘तब तो वाकई चिंता की बात है। मानसून आने से राजनीतिक अस्थिरता बढऩे वाली है तो राष्ट्रीय अशांति का खतरा है। हमें इस दिशा में वैज्ञानिकों का सहयोग लेना चाहिए।’ मैंने कहा। मुख्यमंत्री बोले-‘वैज्ञानिकों का कोई दोष नहीं है। वे तो अच्छा कॉपरेट कर रहे हैं। देख नहीं रहे, पिछले तीन दशक में मौसम व पर्यावरण किस कदर बदल गए हैं। पर्याप्त वर्षा के स्थान पर बूंदा-बांदी हो रही है। फिर वर्षा वहां हो रही है जहां इसकी जरूरत नहीं है।’ ‘ऐसा नहीं हो सकता कि वर्षा जोरों से आए और बाढ़ आ जाए?’ ‘हां-फिर वर्षा आए तो इतनी जोरों से कि बाढ़ से जनजीवन त्रस्त हो जाए। बाढ़-राहत का कार्य भी ऐसा ही है, जिसमें सारा मंत्रिमंडल उनके अमचों-चमचों सहित व्यस्त रहता है।’ मुख्यमंत्री ने कहा। मैं बोला-‘सच तो यह है मुख्यमंत्री जी कि मानसून को समय पर नहीं आना चाहिए।’ ‘लेकिन करें क्या?’ तभी वहां मंत्री जी आ धमके और सिर लटकाकर मुख्यमंत्री जी से बोले-‘आज का पेपर पढ़ा आपने?’ ‘हां-पढ़ा है। इस बार मानसून समय पर आ रहा है।’ ‘हमें क्या करना है?’ ‘कार्यकर्ताओं से कहो कि जल्दी बाढ़ राहत शुरू करवाएंगे। बाढ़ आए या नहीं, हम केवल सामान्य वर्षा को भी जल प्लावन में तब्दील कर देंगे।’ ‘लेकिन एक प्राब्लम है सूखे-अकाल में जो थोड़े-बहुत काम हुए हैं वे बह जाएंगे।’ ‘आप कमाल करते हैं। फिजूल की चिंता करते हैं। असली चिंता तो यह है कि राहत की कटौती हो जाएगी। चुनाव नजदीक हैं। बैंक बैलेंस नहीं बनाया तो कौन टिकट देखा और कौन वोट! तुम्हें पता होना चाहिए हमारे आलाकमानों ने स्विस बैंकों में करोड़ों के खाते खोले हैं और हम अभी लाखों भी नहीं कमा सके कि मानसून समय पर आ गया।’ मैं बोला-‘तो हो क्या गया। अगली बार विलम्ब से आ जाएगा मानसून, फिर कमा लेना।’ मंत्री बोले-‘कब मुख्यमंत्री बदल जाएं और पुनर्गठन में कब हमारा पत्ता साफ हो जाए, कह नहीं सकते। समय कम है और काम ज्यादा। ऐसे हालात में मानसून का समय पर आना मुनासिब नहीं है।’
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक

By: divyahimachal

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