संसद सत्र की चुनौतियां
लोकतन्त्र में संसद किसी भी हालत में तब खामोश नहीं रह सकती जब सड़कों पर कोहराम मचा हुआ हो
आदित्य चौपड़ा। आज से संसद का वर्षाकालीन संक्षिप्त सत्र शुरू हो रहा है जो केवल 13 अगस्त तक चलेगा अतः प्रत्येक सांसद की यह जिम्मेदारी है कि वह इसकी बैठकों के माध्यम से देश की जनता की समस्याओं के निवारण के लिए ठोस प्रयास करे। लोकतन्त्र में संसद किसी भी हालत में तब खामोश नहीं रह सकती जब सड़कों पर कोहराम मचा हुआ हो और चारों तरफ समस्याओं से लोग जूझ रहे हों। अतः देश की संसद को निरपेक्ष भाव से राष्ट्रीय परिस्थितियों का जायजा लेते हुए लोगों को राहत प्रदान करने के प्रावधानों के बारे में गंभीरता से सोचना होगा। संसद केवल विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच वाद-विवाद का स्थल नहीं होती है बल्कि जन हित में फैसले करने का सबसे बड़ा मंच होती है। इसके माध्यम ही सत्तारूढ़ सरकार की जवाबदेही और जिम्मेदारी तय होती है और जरूरत पड़ने पर जवाबतलबी भी होती है परन्तु यह भी सच है कि सत्ता और विपक्ष की खेमेबाजी के दौरान देश की यह सबसे बड़ी पंचायत लाचारगी की हालत में भी पहुंचती दिखाई पड़ जाती है। फिलहाल देश कोरोना के संक्रमण काल से गुजर रहा है अतः सबसे बड़ी जरूरत यह है कि संसद में सभी कोरोना से निपटने की वह पुख्ता नीति तय हो जिससे चालू वर्ष के दौरान प्रत्येक वयस्क नागरिक को वैक्सीन देकर संक्रमण की भयावहता को टाला जा सके।