ब्रिटेन का संकट

विकसित देशों का आयकर नीति पर तो याद नहीं पड़ता कभी किसी के नीतियों पर हस्तक्षेप किया हो। मगर अपनी तरह के एक अभूतपूर्व फैसले में आइएमएफ ने ब्रिटेन में नवनियुक्त पीएम लीज ट्रस के आयकर में कटौती नीति की जमकर आलोचना की है।

Update: 2022-09-29 05:36 GMT

Written by जनसत्ता; विकसित देशों का आयकर नीति पर तो याद नहीं पड़ता कभी किसी के नीतियों पर हस्तक्षेप किया हो। मगर अपनी तरह के एक अभूतपूर्व फैसले में आइएमएफ ने ब्रिटेन में नवनियुक्त पीएम लीज ट्रस के आयकर में कटौती नीति की जमकर आलोचना की है। आइएमएफ ने चेतावनी दी कि आयकर की शीर्ष 45 फीसद दर को खत्म करने से असमानता और भी बदतर होगी। वित्त मंत्री क्वार्टेंग ने निगमित कर की मूल दर को 20 फीसद से घटाकर 19 फीसद करने, स्टांप शुल्क में कमी और राष्ट्रीय बीमा और निगम कर में वृद्धि को उलटने की भी घोषणा की है।

अर्थशास्त्री चिंतित हैं कि ट्रेजरी खर्च में कटौती करने के बजाय उधार के माध्यम से स्थायी कर कटौती कर रहा है। इससे ब्रिटेन का वित्तीय घाटा और बढ़ेगा। सरकार कर्ज तले दबती चली जाएगी। जिन उद्देश्यों को सामने रख कर यह सब किया आ रहा है, वह दरअसल देश के अमीर तबके को और अमीर बनाने की रणनीति प्रतीत हो रही है। कारपोरेट टैक्स का कटौती से होने वाले फायदे को वहां का व्यापारी वर्ग अपने व्यापार बढ़ाने में खर्च नहीं करेगा। उसे मालूम है विश्व संभावित आर्थिक मंदी के मुहाने पर खड़ा है। इसलिए लीज ट्रस के समर्थक भले ही इसे आर्थिक सुधार की संज्ञा दें रहे हों, पर ऐसा लगता है यह 'ग्रेट ब्रिटेन' को 'कमजोर ब्रिटेन' बना देगा।

पहले से ही मुश्किलों का सामना कर रही कांग्रेस के लिए राजस्थान का घटनाक्रम अप्रत्याशित है। अब अशोक गहलोत की कूटनीति खुद उन पर ही भारी पड़ रही है और अब उनके लिए 'दुविधा में दोनों गए माया मिली ना राम' वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। न वे कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बन सकेंगे और न ही अब राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने की कोई संभावना है। राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच छत्तीस का आंकड़ा कोई नहीं बात नहीं। मुख्यमंत्री पद की सचिन पायलट की आकांक्षा किसी से छिपी नहीं है। 2020 में तो इसे लेकर वे खुली बगावत तक कर चुके हैं।

राजस्थान कांग्रेस में जिस तरह की स्थिति बन गई है, वह पूरी पार्टी के लिए शर्मिंदगी का एक नया अध्याय है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बाद राजस्थान का मसला सुलझाने के लिए प्रियंका गांधी को मैदान में उतारा गया है। मगर जैसे फटे हुए दूध को फिर से सही नहीं किया जा सकता है, वैसे ही राजस्थान के खेल ने न सिर्फ अशोक गहलोत की छवि को ठेस पहुंचाई है, बल्कि पूरी कांग्रेस पर लोगों को तंज कसने का अवसर मिल गया। एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी में इस तरह की अनुशासनहीनता और अपनी डफली अपना राग बजाने की मनोवृत्ति पार्टी की नैया डुबाने वाला कृत्य है!


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