बीआरआई का भविष्य अधर में

चीन ने जिस बेल्ट रोड योजना को बड़े जोश से दुनिया के सामने रखा था और जिस गरमजोशी से इस योजना को सभी संबंधित मुल्कों ने स्वीकार किया था

Update: 2022-06-27 19:13 GMT

चीन ने जिस बेल्ट रोड योजना को बड़े जोश से दुनिया के सामने रखा था और जिस गरमजोशी से इस योजना को सभी संबंधित मुल्कों ने स्वीकार किया था, जिस प्रकार से इस संबंध में कई मुल्कों में इस योजना को कार्यान्वित किया गया था और कई परियोजनाएं अत्यंत कम समय में तैयार भी हो गई थी, आज उनका भविष्य अधर में लटका दिखाई दे रहा है। गौरतलब है कि बेल्ट रोड पहल या बेल्ट रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) चीन द्वारा प्रस्तावित एवं समर्थित एक भारी भरकम इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना है जिसे औपचारिक तौर पर चीन ने 2013 में दुनिया के सामने रख दिया था। इस बाबत बीआरआई फोरम का पहला सम्मेलन वर्ष 2017 में बुलाया गया था, जिसमें 100 से ज्यादा मुल्कों ने भाग लिया था और ऐसा लगने लगा कि चीन को अपनी इस परियोजना के लिए शेष दुनिया से भारी समर्थन मिल रहा है। हालांकि भारत ने इस सम्मेलन का बहिष्कार किया, क्योंकि 'चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा' (सीपीआईसी) इसी बड़ी योजना का हिस्सा बताया गया है जो जम्मू-कश्मीर के उस हिस्से में बनाया जा रहा है जिसे पाकिस्तान ने जबरदस्ती अपने कब्जे में लिया हुआ है। अप्रैल 2019 के अंत में जब बीआरआई फोरम का दूसरा सम्मेलन आयोजित किया गया तो हालांकि इस सम्मेलन में पहले सम्मेलन में अपेक्षा कहीं ज्यादा भागीदारी रही, लेकिन इसके साथ ही दुनिया भर से इस परियोजना के संदर्भ में कई प्रश्नचिन्ह भी लगने शुरू हो गए और यही नहीं, चीन का आत्मविश्वास भी पहले के मुकाबले कुछ कम दिखाई दिया। इससे बीआरआई पहल की सफलता की संभावनाओं पर सवालिया निशान लगने शुरू हो गए थे। श्रीलंका में आए संकट से पूरी दुनिया सकते में है। कहा जा रहा है कि श्रीलंका में संकट के पीछे कहीं न कहीं उसका कर्ज है। यह वो कर्ज है जो श्रीलंका ने अपने बंदरगाह और रेल आदि के निर्माण के लिए चीन से लिया था। पहले हम्बनटोटा बंदरगाह के निर्माण हेतु लिए गए ऋण को न चुका पाने के कारण चीन ने उससे वो बंदरगाह ही हथिया लिया और बाद में उसी प्रकार के अन्य ऋणों को चुका न पाने के कारण वो संप्रभु ऋण के जाल में फंसता चला गया और आज उसकी क्रेडिट रेटिंग इतनी कम हो चुकी है कि उन ऋणों को आगे बढ़ा पाना उसके लिए असंभव हो चुका है। कोरोना काल में पर्यटन से उसकी आमदनी भी खासी कम हो चुकी है जिससे उसकी मुश्किलें और भी बढ़ गई हंै। उसी तरह से केन्या का मोंबासा बंदरगाह भी चीन द्वारा हथिया लिया जाना लगभग तय है। पाकिस्तान के वित्तीय संकट के तार भी किसी न किसी प्रकार से चीन के साथ जुड़े हैं। मालदीव, लाओस, जिबौती (अफ्रीका), मोंटेनेग्रो, मंगोलिया, तज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान आदि कई अन्य देश भी चीन की इस कर्ज जाल की कूटनीति का शिकार हो चुके हैं।

यह देखते हुए मलेशिया ने अपनी बेल्ट रोड परियोजनाओं को बहुत छोटा कर दिया है। कुल मिलाकर जहां-जहां चीन की बेल्ट रोड परियोजना शुरू हुई थी, वहां-वहां वह योजना पूर्णता प्राप्त करने की स्थिति में नहीं है। इन सभी मुल्कों में सतारूढ़ सरकारों की बेईमानी के चलते मिलीभगत से इन योजनाओं को शुरू तो कर दिया गया, लेकिन वहां की जनता इससे त्रस्त है। इसके कारण कई स्थानों पर इसके खिलाफ आंदोलन शुरू हो चुके हैं। कर्जजाल कूटनीति के अंतर्गत चीन की बेल्ट रोड परियोजना की शुरुआत ही ऐसी परियोजनाओं से की गई जो आर्थिक दृष्टि से लाभकारी नहीं थे। हम्बनटोटा बंदरगाह, एक ऐसा बंदरगाह है जहां परिवहन आवागमन बहुत कम है। पाकिस्तान में जो सीपीईसी के अंतर्गत विद्युत परियोजनाएं बनाई गई हैं, उनके द्वारा उत्पादित बिजली के वितरण का ढांचा ही नहीं था, जिसके कारण वह परियोजना लाभप्रद नहीं रही। इसी परियोजना के अंतर्गत बने मार्गों पर आवागमन शुरू ही नहीं हुआ है। लेकिन इन परियोजनाओं के कारण पाकिस्तान पर कुल 90 अरब डालर का विदेशी ऋण बढ़ चुका है जिसमें से 25 अरब डॉलर तो केवल चीन से ही है। इतने बड़े ऋण को चुका पाना पाकिस्तान के बूते की बात नहीं। नतीजतन संप्रभु संकट के चलते उसकी क्रेडिट रेटिंग तो गिरी ही, उनके रुपए की भी दुर्गति हो चुकी है। आज पाकिस्तानी रुपया 197.6 रुपए प्रति डालर के आसपास पहुंच चुका है। आज जहां बेल्ट रोड परियोजना के कारण संबंधित देश संकट में हैं, वहीं पूरी दुनिया का चीन के प्रति नजरिया तेजी से बदल रहा है। गौरतलब है कि यूरोप के देशों ने बेल्ट रोड योजना को हाथों-हाथ लिया था, लेकिन कोरोना के फैलाव में चीन की भूमिका से इन देशों की सोच में बदलाव आ रहा है। यही नहीं कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन और आर्थिक गतिविधियों में व्यवधान के कारण भी इन परियोजनाओं में रुकावट आई है। लेकिन साथ ही साथ चीन और अमरीका के बीच बढ़ती कड़वाहट के कारण यूरोप के देशों में भी बीआरआई के प्रति रुझान बदल रहा है।
युद्ध और बीआरआई
समझना होगा कि चीन समर्थित बेल्ट रोड परियोजना के माध्यम से जहां पूरी दुनिया को रेल, रोड और जलमार्ग से जोड़ने ही योजना चल रही है, इसके साथ ही कई अन्य परियोजनाओं का भी प्रारंभ हो चुका है। इनमें यूरोपीय संघ की ग्लोबल गेटवे, अमरीकी नेतृत्व में ब्लूडॉट नेटवर्क (बीडीएन), जी-7 देशों द्वारा संचालित बिल्ड बैक बैटर वर्ड, जापान का क्वालिटी इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट (क्यूआईआई), रूस का युरोएशिया इक्नॉमिक यूनियन (ईएईयू) और भारत, रूस, ईरान द्वारा समर्पित इंटरनेशनल नार्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर आदि शामिल हैं। यह सही है कि अफ्रीका, एशिया और यूरोप के भूगोल पर केन्द्रित, चीन समर्थित बेल्ट रोड परियोजना इस समय दुनिया की सबसे बड़ी परियोजना है जिसमें 142 देश शामिल हंै। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते तेजी से बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के कारण इस परियोजना और अन्य परियोजनाओं पर भारी असर पड़ सकता है। चीन के लिए रूस की भूमि यूरोपीय बाजारों के लिए सबसे अधिक विश्वसनीय मार्ग था। रूस, यूक्रेन, पौलेंड, बेलारूस आदि बेल्ट रोड की रेल योजना का बहुत बड़ा हिस्सा थे। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण इस योजना पर ग्रहण लग सकता है।
अमरीका और चीन के बीच बढ़ती तनातनी के कारण चीन और 17 मध्य एवं पूर्वी यूरोपीय देशों वाला बेल्ट रोड सहयोग मंच पहले से ही मुश्किल में पड़ चुका है। और अब रूस और यूरोपीय देशों के बीच बढ़ते तनाव के चलते इस मंच को और अधिक धक्का लग सकता है। चीन और यूरोप के बीच कनेक्टीविटी के लिए अब चीन को पुराने मार्ग पर ही आश्रित होना होगा। यानी चीन का रेल कनेक्टीविटी का सपना अब अधूरा ही रह सकता है। यह भी संभव है कि रूस पर अमरीकी प्रतिबंधों और अमरीका के अन्य कदमों से प्रभावित रूस भी चीन की तरफ कदम बढ़ा सकता है जिसका अमरीका को भी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। उधर रूस और भारत की दोस्ती दोनों देशों के लिए महत्त्वपूर्ण है। अल्पकाल में यह संभव है कि रूस को मास्टर कार्ड और वीजा के जाने के बाद चीन के यूनियन पे पर भरोसा करना पड़े, लेकिन दीर्घकाल में रूस द्वारा ईएईयू इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना को आगे बढ़ाया जाना संभव है और चीन की हिस्सेदारी उसमें भी महत्वपूर्ण होगी। यूरोपीय देश यह समझते हैं कि चीन उनके लिए खतरा बन सकता है। ऐसे में चीन की बेल्ट रोड योजना की सफलता को रोकना उनके लिए महत्वपूर्ण होगा। आने वाले समय में विभिन्न अंतरराष्ट्रीय ताकतों द्वारा अपने-अपने हितों की रक्षा की रस्साकशी के अंतिम परिणाम के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन माना जा सकता है कि चीन की बेल्ट रोड योजना अपने अंतिम लक्ष्य तक पहुंच पाएगी, इस बात की संभावनाएं समाप्त होती दिखाई दे रही हैं।
डा. अश्वनी महाजन
कालेज प्रोफेसर

सोर्स- divyahimachal

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