हर बल्लेबाज का आता है खराब दौर…. लेकिन विराट कोहली अपनी विरासत के इस हाल के खुद जिम्मेदार
आत्म-दया यानि ख़ुद पर दया करना एक भयानक पीड़ा है. एक बार जब यह किसी को प्रभावित करता है
संदीपन शर्मा
आत्म-दया यानि ख़ुद पर दया करना एक भयानक पीड़ा है. एक बार जब यह किसी को प्रभावित करता है, तो ख़ुद के लिए सहानुभूति (sympathy) की तलाश करना उसका प्राइमरी गोल बन जाता है. यह उन्हें विश्वास दिलाता है कि वे बेहतर के लायक हैं, लेकिन वे अफ़सोस करने के अलावा खुद के लिए और कुछ नहीं कर सकते. यह कम से कम पीड़ित व्यक्ति को निर्दोष साबित करता है कि उसकी पीड़ा अपरिहार्य है और इसलिए मान लिया जाना चाहिए.
जब इसका सार्वजनिक अभिनय किया जाता है, तब आत्म-दया (self-pity) खेदजनक तमाशा बन जाती है. यह उम्मीद से हार मान लेने तक की दुखद यात्रा करने वाले व्यक्ति के जीवन में हो रहे उथल-पुथल का खुलासा करता है. यह उस व्यक्ति को घुटन भरी पीड़ा में दिखाता है. यह इतनी गहरी पीड़ा को ज़ाहिर करता है कि अगर वह जीत गया तो उसे राहत मिलेगी, और अगर वह लड़ना जारी रखे तो अधिक दर्द होगा. जब इसे सार्वजनिक तौर पर उजागर किया जाता है, तो आत्म-दया सहानुभूति के लिए, हार मान लेने के लिए और दिखावे के लिए एक मार्मिक दलील है.
IPL 2022 कोहली का बुरा हाल
यदि आप देखना चाहते हैं कि आत्म-दया किसी व्यक्ति को कितना बदल सकती है, तो इन दिनों विराट कोहली (Virat Kohli) को बल्लेबाजी करते हुए देखें. मंगलवार की रात राजस्थान रॉयल्स के खिलाफ वह सैमसन की तरह दिखे जिनके बाल अचानक से छोटे हो गए थे. एक घबराए हुए योद्धा की तरह उन्होंने अपना बल्ला इधर-उधर घुमाया, कुछ बेढ़ंगे शॉट्स से ख़ुद को शर्मिंदा किया और फिर निचले क्रम के बल्लेबाज की तरह बाउंसर को पॉइंट पर फील्डर को टॉप-एज करके आउट हो गए.
कोहली का अंदर जाना और फिर कुछ ही मिनटों में डगआउट में वापसी करना इस आईपीएल (IPL) का थीम बन गया है. इस सीजन में उन्होंने दो गोल्डन डक बनाए हैं और पहली 10 गेंदों में छह बार आउट हुए हैं. पहले आठ मैचों में उनका 17 का औसत भी मिसलीडिंग है, क्योंकि महज एक बार 48 स्कोर करने के कारण औसत दो अंकों में है.
सभी बल्लेबाज लीन पैच से गुजरते हैं. लेकिन कोहली की ट्रेजडी उनकी अपनी प्रतिक्रिया से बढ़ जाती है. कोहली पहले पिच को देखते हैं, फिर अपने बल्ले को देखते हैं, और फिर उनके चेहरे पर उदास-मार्मिक मुस्कान के साथ वह बल्ले को एक हारे हुए, निराश योद्धा की तलवार की तरह खींचते हुए डगआउट में वापस जाते हैं. 30 सेकंड के उस लंबे सफर में एक राजा का एहसास होता है, जो काफी देर तक घूम चुका है और सोचता है कि यह घर जाने का समय है. इसके आगे बताएं तो ग्रीक एनालॉजी (Greek Analogy) की तरह उनके हाथ में बल्ला सिसिफस (Sisyphus) का शिलाखंड बन गया है.
कोहली का आक्रामकता के देवता से आत्म-दया के मार्मिक शिकार के रूप में परिवर्तन होना विनाशकारी है. जो कुछ भी हो हाड़-मांस से बने मिडिल फिंगर का उठना हथौड़े से पीटने के सामान है, यह उनके लिए सबसे बड़ी त्रासदी है. दया की वस्तु के रूप में कोहली अपने एंटी-क्लाइमेक्स पर हैं जो देखने योग्य नहीं है
भावना और जज्बे वाली कहानी…
कोहली की कहानी हमेशा उनकी भावना-साहस की जीत के बारे में थी. उनके पिता के निधन के बाद भी टीम के लिए बल्लेबाजी करने का उनका संकल्प, कड़ी मेहनत, अनुशासन और मानसिक दृढ़ता के माध्यम से सफल होने की दृढ़ इच्छा शक्ति के बारे में लोग बातें करते रहे हैं. अपने सबसे अच्छे फॉर्म के दौरान कोहली ने ताकत, सम्मान, दृढ़ता और अभिमान जैसे गुणों का पालन करते हुए लाजमी तौर पर सफल हुए. उन्होंने सभी को उम्मीद दी कि अगर आप कोहली की तरह इसे करने के लिए तैयार हैं, तो मानव प्रयास की पहुंच से बाहर कुछ भी नहीं है. जैसा कि लता मंगेशकर ने एक बार कहा था, जब कोहली खुद की तारीफ कर रहे हैं तो आप उनकी तारीफ कैसे करते हैं?
…अब निराशा और हताशा की तस्वीर
लेकिन इन दिनों कोहली मूल रूप एक उदास बहरूपिये यानि दोहरे चरित्र वाले व्यक्ति हैं. यदि आप साहित्य के प्रशंसक हैं तो उनकी उदासी भरी मुस्कान, हताशा की भावना आपको यह सोचने पर मजबूर करती है कि किसी ने हॉवर्ड रोर्क (Howard Roark) को पीटर कीटिंग (Peter Keating) में बदलने के लिए ऐन रैंड (Ayn Rand) की कहानियों की पटकथा को बदल दिया हो; या, शायद, डोरियन ग्रे (Dorian Gray) की तस्वीर के माध्यम से एक खंजर डालकर रातोंरात उसे चार्मिंग मैवरिक (charming maverick) से पुराने, थके-मांदे और बेढ़ंगे चरित्र में बदल दिया हो.
कोहली ख़ौफ़, अचरज और चाहत का जादू नहीं जगाते है. वे अब और प्रेरित नहीं करते हैं. 2022 का कोहली केवल हमदर्दी प्रकट करने के बारे में हैं, जिसे आप तब भी बेहद सहानुभूति के साथ सफल होते देखना चाहते हैं, जब वह आपकी पसंदीदा टीम के खिलाफ खेल रहा हो. जब वह बल्लेबाजी के लिए उतरते हैं तो उनके प्रतिद्वंद्वी उनसे डरते नहीं हैं. इन दिनों उनके फैंस उनके लिए डरे हुए हैं, इस डर से कि कहीं वो दोबारा फेल न हो जाएं. गॉड ऑफ़ क्रिकेट से कोहली सब्जेक्ट ऑफ़ प्रेयर बन गए हैं.
क्रिकेट का ओवरडोज बन रहा मुसीबत?
कोई नहीं जानता कि कोहली की फ़ौलादी शक्ति मिट्टी में क्यों बदल गई है. हो सकता है कि क्रिकेट के ओवरडोज ने उन्हें ख़ाक कर दिया हो. जैसा कि रवि शास्त्री तर्क देते हैं, बायो-बबल्स (bio-bubbles) के बोझ ने शायद उनके दिमाग को फ्राई कर दिया है. सभी लक्ष्यों को प्राप्त करने वाले कोहली अब शायद सफलता के भूखे नहीं हैं और आप उन्हें निर्वाण (Nirvana) प्राप्त करने के लिए दोष नहीं दे सकते. यह संभव है कि गेंदबाजों ने उन्हें समझ लिया हो – पांचवें स्टंप पर लगी गेंद, बाएं हाथ के स्पिनर, पारी की शुरुआत में फ्रंट फुट पर संतुलन खोने की प्रवृत्ति जैसी सभी बातें बैट्समैन कोहली के पतन के कारण बने. शायद वे विचलित हैं. शायद वह कहीं और रहना चाहते हैं. इस सभी बातों को हम तब तक कभी नहीं जान पाएंगे जब तक वे हमें नहीं बताते कि यह क्या है.
कोहली को लेना चाहिए ब्रेक
कारण जो भी हो, नुस्खा सरल है. कोहली को क्रिकेट से ब्रेक लेना चाहिए और सिर्फ इसलिए नहीं कि उनकी बल्लेबाजी फॉर्म में गिरावट आई है. उन्हें अपनी विरासत को बचाने के लिए स्टेज छोड़ना होगा, फ्लडलाइट्स से दूर जाना होगा. उनके प्रशंसक स्कोर के लिए संघर्ष करने वाले बल्लेबाज के तौर पर उनको स्वीकार कर सकते हैं. उम्मीद के मुताबिक, वे क्रिकेट से उनकी अस्थायी अनुपस्थिति को झेल सकते हैं. लेकिन वे स्वाभिमानी, साहसी और दृढ़निश्चयी कोहली को किसी असहाय की तरह आत्म-दया की उन बेबस मुस्कानों के साथ अपनी विरासत को मिटाते हुए नहीं देख सकते. वरना, भारत को अपने सबसे महान रोल मॉडल और हीरो में एक से वंचित होना पड़ेगा.