'हमलावर' बने 'बेचारे'
नफरत और हिंसा का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह ‘रामनवमी’ से लेकर ‘बैसाखी’ के पावन त्योहारों तक जारी रहा। फिलहाल कुछ शांति है
नफरत और हिंसा का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह 'रामनवमी' से लेकर 'बैसाखी' के पावन त्योहारों तक जारी रहा। फिलहाल कुछ शांति है, लेकिन नफरत खत्म नहीं हुई है। अब यह सनातन-सी लगती है। ऐसी ख़बरें भारत के भीतर तक ही सीमित नहीं रही हैं, बल्कि अमरीका में मैत्री-संवाद के दौरान भी उठी हैं। एक पत्रकार ने अमरीकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन से भारत में अल्पसंख्यकों पर किए जा रहे हमलों को लेकर सवाल किया, तो ब्लिंकेन का जवाब भारत-विरोधी और एकतरफा था। अल्पसंख्यकों पर हमलों और उनके मानवाधिकारों को लेकर भारत को कटघरे में खड़ा किया गया। छवि धूमिल करने की कोशिश की गई। प्रधानमंत्री मोदी और भारत को लेकर अमरीकी सीनेट में भी एक अश्वेत, महिला सांसद ने इस मुद्दे पर सवाल उठाया कि अमरीकी प्रशासन कब कारगर कार्रवाई करेगा? शब्दों का अंतर हो सकता है, लेकिन अमरीका की सरज़मीं से ये सवाल बार-बार किए जाते रहे हैं कि भारत में सांप्रदायिक अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार संकट में हैं? मुसलमानों का अस्तित्व खतरे में है! ऐसे सवाल राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा और डोनाल्ड टं्रप के कार्यकालों के दौरान भी उठाए गए। हर बार ऐसा आभास दिया गया मानो अमरीकी प्रशासन भारत सरकार को आगाह कर रहा हो कि ऐसा नहीं होना चाहिए। हालांकि हमारे विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कड़ा और माकूल जवाब दे दिया है, लेकिन ये तमाम सवाल बेबुनियाद और सफेद झूठ हैं। भारत में अल्पसंख्यक जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई, पारसी आदि समुदाय हैं।
क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचली