क्या शहीद भगत सिंह और अंबेडकर केवल प्रतीक भर हैं, मान उनके विचारों पर चल सकेंगे ?
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के केवल प्रतीक का राजनैतिक इस्तेमाल दरअसल, उनके विचारों के साथ नाइंसाफी है
Faisal Anurag
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के केवल प्रतीक का राजनैतिक इस्तेमाल दरअसल, उनके विचारों के साथ नाइंसाफी है. पंजाब में भगत सिंह के गांव में शपथ लेने वाले भगवंत सिंह मान भगत सिंह और उनके साथियों के विचारों पर चल कर एक ऐसे पंजाब का नवनिर्माण कर सकते हैं जो भगत सिंह के बुनियादी सरोकार के अनुरूप हो. इस सवाल का जवाब तो भविष्य में मिलेगा लेकिन तत्काल जिस शाहखर्ची का बेजा प्रदर्शन किया गया है, उससे उम्मीद कमजोर ही होती है. भगत सिंह और उनके साथियों ने केवल आजादी के लिए कुर्बानी नहीं दी थी बल्कि उनके पास एक ठोस राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण था. भगत सिंह हर तरह के बराबरी के पक्षधर थे और पूंजी की तानाशही वाले शासन के खिलाफ थे. भगत सिंह ने दलितों और अल्पसंख्यकों के बराबरी के हक की वकालत की थी और सबसे बड़ी बात उनके पास एक समाजवादी नजरिया था. क्या आम आदमी पार्टी दावा कर सकती है कि वह भगत सिंह की राहों पर चल रही है और उसके दिल्ली के आठ सालों के शासनकाल में न्याय,समानता और शोषण के तमाम तरीकों के खिलाफ कदम उठाए गए हैं.
आम आदमी पार्टी ने अपनी शुरूआत में जरूर राजनैतिक भ्रष्टाचार,सत्ता के विकेंद्रीकरण और राजनीतिक तौकरतरीकों में दूसरों से अलग दिखने का दावा किया. लेकिन दिल्ली में उसके आठ सालों के शासन में केवल शिक्षा और हेल्थ के क्षेत्र में ही बेहतर कार्य हुए हैं साथ ही बिजली दरों में राहत दी गयी है. दिल्ली किसी भी अन्य मामलों में ऐसा कोई आदर्श पेश नहीं कर पायी है जिससे अहसास हो कि वह भगत सिंह या डॉ अंबेडकर के विचारों के अनुकूल समाज और विकास को अंजाम देने का प्रयास कर रही है. यहां तक आम आदमी पार्टी की आंतरिक संरचना में भी लोकतंत्र का अभाव है, और इसके अनेक उदाहरण पहली बार ही सत्ता में आते ही आम आदमी पार्टी ने स्थापित कर दिए थे. जिस तरह कांग्रेस या भारतीय जनता पार्टी में सोनिया गांधी और नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोल कर कोई पार्टी में नहीं रह सकता है ठीक वैसे ही हालात प्रशांत भूषण, शांति भूषण, योगेंद्र यादव झेल चुके हैं.
अन्ना आंदोलन के गर्भ से निकलने के बावजूद आम आदमी पार्टी ने एक दक्षिणपंथी मध्यमार्गी राह अपनायी है. साथ ही अल्पसंख्यकों के हितों को लेकर उसने कोई आवाज बुलंद नहीं की है. बाद के दिनों में तो आम आदमी पार्टी ने बहुसंख्यक समुदाय के धार्मिक भावनाओं को प्रश्रय देने के लिए तीर्थ स्थलों की यात्रा सरकारी खर्च पर कराने का कार्यक्रम भी चलाया. भगत सिंह का एक प्रसिद्ध लेख है मैं नास्तिक क्यों हूं. भगत सिंह के विचारों का केंद्रीय पहलू यह लेख है. लेकिन सत्ता ग्रहण करने के पहले ही जिस तामझाम और शाही अंदाज का प्रदर्शन आम आदमी पार्टी ने किया है उससे भविष्य को लेकर कितनी उम्मीदें पैदा हो सकती हैं. भगत सिंह दिखावा और शाहखर्ची के खिलाफ थे. उनके लिए सादगी एक जीवन मूल्य था.
भागत सिंह के विचार थे "यह भयानक असमानता और जबरदस्ती लादा गया भेदभाव दुनिया को एक बहुत बड़ी उथल-पुथल की ओर लिए जा रहा है. यह स्थिति बहुत दिनों तक कायम नहीं रह सकती. स्पष्ट है कि आज का धनिक समाज एक भयंकर ज्वालामुखी के मुंह पर बैठ कर रंगरलियां मना रहा है और शोषकों के मासूम बच्चे तथा करोड़ों शोषित लोग एक भयानक खड्ड की कगार पर चल रहे हैं." ""यह आज के क्रूर साम्राज्यवादी उदारवाद के दौर में भी एक बड़ी सच्चाई है. भगत सिंह ने यह भी कहा था कि फैक्टरी-कारखानों के क्षेत्रों में, गन्दी बस्तियों और गांवों की जर्जर झोपड़ियों में रहने वाले करोड़ों लोगों में क्रांति की अलख जगानी है, जिससे आजादी आएगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असंभव हो जाएगा. इसके साथ ही जाहिर है कि साम्राज्यवादी वैश्वीकरण व लूट-खसोट के इस भयानक दौर में भगत सिंह के विचार काफी प्रासंगिक हो गये हैं. खासकर साम्राज्यवाद, धार्मिक-अंधविश्वास व साम्प्रदायिकता, जातीय उत्पीड़न, आतंकवाद, भारतीय शासक वर्गों के चरित्र, जनता की मुक्ति के लिए जो भगत सिंह ने राह दिखायी थी क्या भगवंत सिंह मान और उनके नेता अरविंद केजरीवाल चलने का साहस दिखा सकते हैं. दिल्ली के शासन प्रयोग से कम से कम ऐसी उम्मीद तो नहीं बंधती है.
पंजाब की चुनौतियां बेहद संजीदा हैं. इसके साथ ही पंजाब एक ऐसे संकट में है जहां खेतिहर श्रमिकों की तकलीफें बेहद गंभीर हैं. पंजाब समृद्धि के बावजूद एक ऐसे आर्थिक ठहराव का शिकार है जिससे बाहर निकलने के टास्क को पिछले 15 सालों से सरकारें टालती रही हैं. इसके साथ ही सामाजिक भेदभाव भी वहां के समाज की एक सच्चाई है. आम आदमी पार्टी यदि भगत सिंह के प्रतीक के सहारे पंजाब की राजनीति को देर तक नहीं ले जा सकती. अंबेडकर का नाम भी पंजाब में जोरशोर से आम आदमी पार्टी ने लिया. लेकिन दोनों के विचारों के अनुरूप समाज बनाने की दिशा में मान कितना सक्रिय होते हैं और प्रतीकों के बजाय दोनों के विचारों को आमजन बना सकेंगे या नहीं इसके लिए ज्यादा देर तक प्रतीक्षा नहीं की जा सकेगी. दिल्ली की अपूर्णता का राग भी पंजाब में नहीं अलापा जा सकता है.