क्वाड सरीखे एक और वैश्विक संगठन आइ-2 यू-2 के पहले शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश के बढ़ते कद का परिचायक ही है। भारत की सदस्यता वाले इस समूह ने एक बार फिर यही रेखांकित किया कि विश्व के प्रमुख देश अंतरराष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय चुनौतियों का सामना करने में नई दिल्ली का साथ लेना आवश्यक समझने लगे हैं।
भले ही आइ-2 यू-2 की ओर से जारी घोषणा पत्र में खाद्य सुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा के साथ आर्थिक सहयोग पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया हो, लेकिन इस संगठन का एक उद्देश्य चीन की ओर से पेश की जा रही चुनौतियों का सामना करना भी है। कुछ समय पहले जब भारत, इजरायल, अमेरिका एवं संयुक्त अरब अमीरात की सदस्यता वाले इस संगठन के प्रतिनिधियों की बैठक हुई थी, तब उसमें समुद्री सुरक्षा पर भी बात की गई थी और यह किसी से छिपा नहीं कि चीन समुद्री सुरक्षा के लिए खतरा बन गया है।
इस पर हैरानी नहीं कि आइ-2 यू-2 को पश्चिमी एशिया के क्वाड की संज्ञा दी जा रही है। विश्व मंच पर भारत की महत्ता किस तरह बढ़ती जा रही है, इसका एक और प्रमाण हाल में तब मिला था, जब पिछले दिनों जर्मनी में आयोजित जी-7 सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया गया था। यद्यपि भारत धनी देशों के इस विशिष्ट समूह का सदस्य नहीं, लेकिन उसे बीते कुछ वर्षों से लगातार आमंत्रित किया जा रहा है।
इसका प्रमुख कारण यही है कि दुनिया के सबसे अमीर और औद्योगिक देश भारत को एक उभरती हुई ताकत के रूप में देखने के साथ यह भी समझ रहे हैं कि उसका साथ लिए बगैर उनका काम चलने वाला नहीं है। सच तो यह है कि विदेश नीति के मोर्चे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सक्रियता और सजगता ने भारत को एक उभरती हुई वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित सा कर दिया है।
विडंबना यह है कि इसके बाद भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता देने में अनावश्यक देरी हो रही है। यह अच्छा हुआ कि भारत ने एक बार फिर सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए जारी प्रयासों की निरर्थकता को लेकर अपनी अप्रसन्नता प्रकट की।
भारत ने यह कटाक्ष करके सुरक्षा परिषद के सुधार में बाधक बने उन देशों को आईना दिखाने का ही काम किया कि बिना किसी निष्कर्ष वाली वार्ता को तो और 75 वर्षों तक जारी रखा जा सकता है। यह विचित्र है कि प्रमुख देश यह तो मान रहे हैं कि सुरक्षा परिषद में सुधार आवश्यक हो चुके हैं, लेकिन वे उन प्रयासों को गति देने के लिए तैयार नहीं, जिनसे अपेक्षित सुधारों की दिशा में आगे बढ़ा जा सके।
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय