Afghanistan Crisis: पंजशीर से 'हारी बाज़ी' जीतेगा अमेरिका?
31 अगस्त.. इस तारीख तक अमेरिका अपने लोग और साजो सामान के साथ अफगानिस्तान की जमीन से चला जाएगा
31 अगस्त.. इस तारीख तक अमेरिका अपने लोग और साजो सामान के साथ अफगानिस्तान की जमीन से चला जाएगा, लेकिन जाने से पहले अमेरिका कुछ ऐसा कर सकता है.. जिससे तालिबान और खुरासान दोनों की नकेल उसके हाथ में रहे. अमेरिका के इस मिशन में सबसे मुफीद होगा उस पंजशीर वैली को अलग देश के तौर पर मान्यता देना, जिस पर तालिबान अभी तक कब्जा नहीं कर पाया है. पंजशीर को मान्यता का मामला हालांकि अभी शुरुआती दौर में हैं… लेकिन अमेरिका की विदेश नीति को समझने वाले मानते हैं कि ऐसा मुमकिन है.
अमेरिका जाते-जाते तालिबान और खुरासान को नया चैलेंज दे सकता है. अफगानिस्तान में सत्ता के केंद्र को दो हिस्सों में बांट सकता है. तालिबान की शक्ति पर लगाम के लिए ये मास्टस्ट्रोक जैसा होगा. ख़बर है कि बाइडेन की पार्टी के ही सीनेटर्स ने ये मांग राष्ट्रपति के सामने रखी है कि पंजशीर को मान्यता दी जाए. मांग है कि पंजशीर की रेजिस्टेंस फोर्स के कुछ नेताओं को भी मान्यता देनी चाहिए. ऐसे नेताओं में खास तौर पर दो लोगों का नाम शामिल है. पहला नाम अहमद मसूद का है. वही अहमद मसूद जो नॉर्दर्न अलाएंस को लीड कर रहे हैं. जिनके पिता अहमद शाह मसूद ने 80 के दशक में तालिबान और सोवियत संघ के खिलाफ पंजशीर में विद्रोहियों का नेतृत्व किया था.
9 सितंबर 2001 को पत्रकार बनकर आए आत्मघाती हमलावर ने खुद उड़ा को लिया था, जिसमें जख्मी अहमद शाह मसूद की मौत हो गयी थी. अमेरिका जिस दूसरे शख्स को मान्यता देने पर विचार कर सकता है वो हैं अमरुल्लाह सालेह, अफगान के उप-राष्ट्रपति. सालेह भी पंजशीर के रहने वाले हैं और अमहद शाह के साथ मिलकर नॉर्दर्न अलाएंस को लीड कर रहे हैं.
अमेरिका के लिए पंजशीर सबसे बेहतर बेस
अमेरिका अगर पंजशीर को मान्यता देता है.. तो इसमें दोनों देशों का आपसी फायदा है. उस पर बात करेंगे.. लेकिन अफगानिस्तान छोड़ने के बाद अमेरिका को एक ऐसा बेस मिल जाएगा.. जहां से वो साउथ, वेस्ट और ईस्ट एशिया पर अपनी पकड़ बनाकर रख सकता है. पंजशीर से अमेरिका ना सिर्फ अफगानिस्तान में तालिबान और ISIS-K पर नज़र रख सकेगा.. बल्कि चीन भी उसके डायरेक्टर रडार पर रहेगा.
अमेरिका ये कह भी चुका है कि वो भले ही अफगानिस्तान छोड़ रहा है.. लेकिन आतंक के खिलाफ, खासतौर पर ISIS-K के विरुद्ध उसका अभियान जारी रहेगा.. जाहिर है ऐसा करने के लिए उसे एक सुरक्षित आर्मी बेस की जरूरत होगी. अफगानिस्तान के करीब पंजशीर से मुफीद और सुरक्षित कोई बेस हो नहीं सकता. ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं कि अमेरिका पंजशीर को मान्यता दे दे.
पंजशीर के लिए मुंहमांगी मुराद
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि तालिबान की सरकार बनने के बाद पंजशीर बहुत दिनों तक आजाद नहीं रह सकता.. क्योंकि तालिबान के पास चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की ताकत और समर्थन है. ऐसे में पंजशीर पर अगर हवाई हमला हुआ या चारों तरफ से घेरा गया तो हथियार-गोला बारूद खत्म होने के बाद पंजशीर को सरेंडर करना पड़ सकता. लिहाजा पंजशीर भी चाहेगा कि अमेरिका उसे अलग देश के तौर पर मान्यता दे दे. इसका सबसे पहला और सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि पंजशीर को अमेरिका जैसे सुपरपावर की डायरेक्ट प्रोटेक्शन मिल जाएगी.
जो तालिबान.. नॉर्दर्न अलायंस को धमाका रहा है.. पंजशीर पर कब्जे की बात कह रहा है.. अमेरिका की वजह से वो खामोश हो जाएगा. जब तक अमेरिका पंजशीर में मौजूद रहेगा, न तो तालिबान, न ही ISIS खुरासान कोई भी पंजशीर वैली में दाखिल होने की हिम्मत नहीं कर पाएगा. पंजशीर में अमेरिकी फौज की मौजूदगी अभेद्य कवच की तरह रहेगी.. इसलिए अमेरिका से मान्यता नॉर्दर्न अलाएंस के नेताओं के लिए फायदे का सौदा है.
पंजशीर तालिबान के लिए अहम क्यों हैं?
पूरे अफगानिस्तान में पंजशीर ही ऐसा इलाका है जहां तालिबान अब तक पहुंच नहीं सका है और न ही तालिबान उसे जीतने के लिए जंग शुरु करने की हिम्मत जुटा पा रहा है. पंजशीर तालिबान के लिए नाक का सवाल तो है लेकिन आगे चलकर कमाई का बड़ा जरिया भी बन सकता है. पंजशीर के बारे में कहा जाता है कि वहां खनिज संपदा का अकूत खज़ाना है. कई कीमती रत्न पंजशीर घाटी में पाए जाते हैं. पंजशीर में पन्ना खनन का बड़ा हब बनने की गुंजाइश है.. क्योंकि वहां पन्ना का बहुत बड़ा भंडार होने की उम्मीद है. पंजशीर में 190 कैरेट्स तक के क्रिस्टल मिलते हैं जिनकी गुणवत्ता कोलंबिया की मुजो खदानों जैसी है.
मुजो खदानों के क्रिस्टल दुनिया में सबसे बेहतरीन माने जाते हैं. अगर वहां माइनिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार हो जाए तो उसका विकास बहुत तेजी से विकास हो सकता है. तालिबान के लगता है कि पंजशीर वैली पर कब्जा करके वो अपनी कमाई का एक बड़ा जरिया हासिल कर सकता है. पंजशीर पर कब्जे से जहां एक तरफ तालिबान को देश चलाने के लिए आमदनी होगी.. वहीं दूसरी तरफ अफगानिस्तान में ये संदेश भी जाएगा कि पूरे देश में ऐसा कोई नहीं जो उसे चुनौती दे सके.