अभिनय के प्रकाश स्तंभ

दिलीप कुमार सात दशक से भारतीय सिने उद्योग की पहचान थे। एक संपूर्ण अभिनेता के रूप में उन्होंने कई पीढ़ियों पर जो छाप छोड़ी,

Update: 2021-07-08 03:39 GMT

दिलीप कुमार सात दशक से भारतीय सिने उद्योग की पहचान थे। एक संपूर्ण अभिनेता के रूप में उन्होंने कई पीढ़ियों पर जो छाप छोड़ी, वह अतुलनीय ही है। हिंदी सिनेमा के पूरे इतिहास में अगर उनकी क्षमता का कोई अभिनेता हुआ, तो वे अमिताभ बच्चन ही हैं। गहन, गंभीर अभिनय से लेकर कॉमेडी और डांस से लेकर तरह-तरह की चुहलबाजियों को परदे पर उतरना इन दोनों के अलावा उस स्तर से कोई कर पाया, कहना कठिन है। लेकिन जब अमिताभ बच्चन का जमाना आया, तब तक फिल्मों का मिजाज बदल चुका था। तब फिल्मों से वे पैगाम गायब हो गया था, जो दिलीप कुमार के युग की पहचान थी। हालांकि गाना गाने की क्षमता के कारण अभिताभ दिलीप कुमार से एक कदम और आगे गए, लेकिन उनकी चंद फिल्में ही होंगी, जो दिलीप कुमार के दौर में बनी संदेश पूर्ण फिल्मों की बराबरी कर सके। दो अलग-अलग दौर के अभिनेताओं की तुलना शायद वैसे भी वाजिब नहीं है।

बल्कि किन्हीं दो अभिनेताओं की तुलना सही नजरिया नहीं कहा जाएगा। इसलिए कि सबका अपना अगले मिजाज होता है, जो अलग-अलग तरह के दर्शकों रास आता है। तभी एक साथ कई अभिनेता लोकप्रिय बने रहते हैँ। जब दिलीप कुमार का जमाना था, तभी राज कपूर और देवानंद जैसे लगभग उतने ही लोकप्रिय अभिनेता भी दर्शकों के दिल पर राज कर रहे थे। इसके बावजूद जब कभी अभिनय क्षमता के शिखर की चर्चा होती थी, तो बात घूम-फिर कर दिलीप कुमार पर ही केंद्रित हो जाती थी। इसीलिए उनका जाना उस समय एक बड़ा शून्य पैदा कर गया है, जब कम से कम ढाई दशक से उन्हें किसी नई फिल्म में नहीं देखा गया था। असल में उनकी मृत्यु भले बुधवार को हुई, लेकिन वे मरणासन्न कई वर्ष से थे। उनके होशो-हवास को लेकर अक्सर निराशाजनक खबरें आया करती थीं। लेकिन इस दौरान कभी ऐसा वक्त नहीं आया, जब लगा हो कि उन्हें भुला दिया गया है। 1944 में फिल्म ज्वार भाटा से एक्टिंग की शुरुता करने वाले दिलीप कुमार के नाम जब अंदाज, आन, दाग, देवदास, मुगल-ए-आजम, गंगा जमुना और राम और श्याम जैसी फिल्में थीं, तो कोई कैसे भुला सकता था। असल में अब जबकि भौतिक रूप से वे दुनिया में नहीं हैं, तब भी ये फिल्में उन्हें करोड़ों लोगों के मानस में जिंदा बनाए रखेंगी।


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