वैश्विक भुखमरी

Update: 2022-08-07 11:54 GMT

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इस साल जारी वैश्विक भुखमरी सूचकांक-2021 (जीएचआइ) में एक सौ सोलह देशों में भारत एक सौ एक वें स्थान पर है, जबकि वर्ष 2020 में भारत एक सौ सात देशों में चौरानवे वें स्थान पर था। रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में भारत अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे है।इसमें कोई संदेह नहीं कि कोविड महामारी के बाद से गेहूं, चावल, चीनी, सब्जी, फल, खाद्य तेल, रसोई गैस, पेट्रोल आदि की कीमतों में भारी इजाफा हुआ, रेकार्ड तोड़ महंगाई बढ़ी और लोगों खासतौर से गरीब तबके को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।वैश्विक भुखमरी सूचकांक की गणना मुख्यरूप से चार संकेतकों अल्प पोषण, कुपोषण, बच्चों की वृद्धि दर और बाल मृत्यु दर के आधार पर की जाती है। अब अगर भारत का स्थान इस सूचकांक में इतना नीचे है तो कहने की जरूरत नहीं कि भुखमरी, कुपोषण, बाल मृत्यु दर, गरीबी, बेरोजगारी जैसी समस्याएं यहां कितनी गंभीर समस्या बन चुकी हैं।

खाद्य सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट- द स्टेट आफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड-2022 के अनुसार 2019 के बाद दुनिया में भूख से संघर्ष की स्थिति और गंभीर हुई है। पिछले साल यानी 2021 में करीब सतहत्तर करोड़ लोग वैश्विक स्तर पर कुपोषण का शिकार पाए गए।इनमें 22.4 करोड़ यानी उनतीस फीसद भारतीय थे। कह सकते हैं कि भारत में कुपोषितों की संख्या दुनियाभर के कुल कुपोषितों के एक चौथाई से भी अधिक है। कितना बड़ा विरोधाभास है कि भारत दूध, ताजे फलों और खाद्य तेलों के उत्पादन मेंदुनिया के देशों में अग्रणी है। गेहूं, चावल, प्याज, अंडे सहित कई खाद्य पदार्थों के उत्पादन में भी दूसरे स्थान पर है।इसके बावजूद वैश्विक भूख सूचकांक में भारत का स्थान एक सौ एकवां है। इन समस्याओं के लिए कभी महंगाई, कभी गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और कभी किसी महामारी को जिम्मेदार बता दिया जाता है। जैसे इन सभी मस्याओं के लिए पिछले डेढ़-दो साल में कोरोना महामारी को जिम्मेदार ठहरा दिया गया।
इसमें संदेह नहीं कि महामारी के बाद से महंगाई में भारी वृद्धि हुई है और मजदूर वर्ग विशेषरूप से असंगठित क्षेत्र के कामगारों, मजदूरों व खेतिहर मजदूरों की वास्तविक आय में भारी कमी आई। इसका नतीजा क्रय-शक्ति लगातार कम होने के रूप में सामने आया है। निजी क्षेत्र में छंटनी के कारण बेरोजगारों की संख्या भी काफी ज्यादा बढ़ गई। बेरोजगारी बढ़ने से गरीबी, अपराध, हिंसा जैसी घटनाएं भी बढ़ी हैं।भारत अनेक खाद्य पदार्थों के उत्पादन में अग्रणी है। इसके बाद भी बाईस करोड़ भारतीयों को भरपेट खाना नसीब नहीं हो पाता। सवाल है आखिर क्यों। आबादी का बड़ा हिस्सा कुपोषण का शिकार क्यों है? इससे तो यही लगता है कि ऐसी समस्याओं की जड़ें कहीं न कहीं हमारी नीतियों के भीतर ही हैं
वर्ष 2019 में दुनिया में बासठ करोड़ लोगों को भूख से जूझना पड़ा था। साल 2021 में यह संख्या बढ़ कर सतहत्तर करोड़ तक पहुंच गई। यानी सिर्फ दो साल में पंद्रह करोड़ लोग और भूख के शिकार लोगों में जुड़ गए। सामान्य-सी बात है कि एक स्वस्थ, विकसित राष्ट्र व समाज के लिए जरूरी है कि उसके नागरिक भी स्वस्थ हों। स्वस्थ नागरिकों से ही स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण संभव है।स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है। स्वस्थ शरीर के लिए उचित मात्रा में पोषक तत्वों और पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है। शरीर और मन स्वस्थ रहता है तो वह परिवार, समाज एवं देश के विकास में सक्रिय सहभागिता कर सकता है।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भुखमरी के चलते लोगों में विशेष रूप से महिलाओं में खून की कमी की समस्या बढ़ी है। पिछले साल (2021) कुल अठारह करोड़ से ज्यादा भारतीय महिलाएं खून की कमी से ग्रस्त पाई गईं। जबकि 2019 में यह संख्या लगभग 17.2 करोड़ थी। यह एक अकेली समस्या दूसरी कई समस्याओं को उत्पन्न करती है, जैसे मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर में वृद्धि होना अथवा संतान का कुपोषित या विकलांग होना इत्यादि।
परिणामस्वरुप समस्याओं का एक दुश्चक्र बन जाता है। इसलिए समझदारी इसी में है कि समस्या का प्रारंभिक स्तर पर ही समाधान कर दिया जाए। एक और विरोधाभास की चर्चा करना यहां प्रासंगिक होगा। कोरोना काल में भारत में अमीरों की संख्या में ग्यारह फीसद की वृद्धि देखी गई। अमीरों की संपत्ति पहले की तुलना में लगभग दोगुनी हो गई। इस दृष्टि से पिछले साल अरबपतियों की आबादी में अमेरिका (सात सौ अड़तालीस) पहले स्थान पर, चीन (पांच सौ चौवन) दूसरे और भारत (एक सौ पैंतालीस) तीसरे स्थान पर रहा।स्वाभाविक है कि डिजिटल क्रांति के कारण एक वर्ग विशेष ने खूब लाभ कमाया, जबकि आम नागरिक की औसत संपत्ति सात फीसद या उससे भी ज्यादा तक घट गई। इस स्थिति के कारण करोड़ों परिवार आर्थिक रूप से तबाह हो गए।

JANSATTA

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