विक्रमसिंघे की जीत

Update: 2022-07-21 07:58 GMT

गहरे आर्थिक-सामाजिक संकट में फंसे श्रीलंका को नया राष्ट्रपति मिलना समाधान की ओर उठा एक कदम है। खास बात यह है कि नया राष्ट्रपति देश पर थोपा नहीं गया है। रनिल विक्रमसिंघे श्रीलंकाई संसद में बहुमत से चुने गए हैं। उन्होंने चुनाव में डलास अल्हाप्पेरुमा और अनुरा कुमारा दिसानायके जैसे कद्दावर नेताओं को पीछे छोड़ दिया। छह बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके विक्रमसिंघे ने 134 मतों से जीत हासिल की है। चुनाव जीतने के बाद उन्होंने उचित ही देश की जनता को संबोधित किया। उन्होंने स्वीकार किया है कि देश बहुत मुश्किल स्थिति में है, हमारे सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं, लेकिन उन्हें यह ध्यान रखना होगा कि संसद ने उनको चुनौतियां गिनाने के लिए नहीं, बल्कि चुनौतियों से निपटने के लिए चुना है। बुधवार को हुए इस चुनाव में अगर श्रीलंकाई सांसदों ने रनिल विक्रमसिंघे के अनुभव को तरजीह दी है, तो यह मुनासिब ही है। उनके प्रतिद्वंद्वी राजनेताओं के पास उतना अनुभव नहीं था, जबकि सांसदों को लगता है कि यह समय अनुभव के इस्तेमाल का है।

गौर करने वाली बात है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से चल रही बातचीत आगे बढ़ गई है और इस काम को विक्रमसिंघे ही आगे बढ़ा रहे हैं, अत: अभी नया राष्ट्रपति चुनने से बातचीत पर असर पड़ सकता था। फिर विक्रमसिंघे के विदेशी नेताओं के साथ संपर्क भी देश के काम आ सकते हैं। राजपक्षे परिवार के मुखिया जिस मोड़ पर देश को छोड़कर भागे हैं, वहां से देश का सुधार की दिशा में मुड़ना बहुत मायने रखेगा। यह काम अगर विक्रमसिंघे ने कर दिया, तो उनका नाम इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो जाएगा। ऐसा संकट दक्षिण एशिया के किसी भी देश में नहीं आया था, श्रीलंका आज ऐसी स्थिति में है कि उसकी मदद करने में भी दुनिया के ज्यादातर देश हिचक रहे हैं। इस देश को अभावों ने इस कदर घेर लिया है कि कर्ज देने वाले राष्ट्रों को अपना पैसा डूबता हुआ दिख रहा है।
हालांकि, रनिल विक्रमसिंघे के पास भी समय कम है। लोग केवल राजपक्षे से ही नहीं, बल्कि विक्रमसिंघे से भी इस्तीफा मांग रहे थे। विक्रमसिंघे के घर को भी आग के हवाले किया गया था, लेकिन तब भी वह संसद की पहली पसंद साबित हुए हैं। बताया जा रहा है कि इस चुनाव में डलास अल्हाप्पेरुमा को लोगों की पसंद बताया जा रहा था। एक आशंका यह भी है कि विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति के रूप में लोग स्वीकार नहीं करेंगे। नए सिरे से देश में विरोध प्रदर्शन शुरू हो सकते हैं, लेकिन अगर ऐसा हुआ, तो इससे श्रीलंका का समय ही खराब होगा। अभी तो बेहतर यही है कि विक्रमसिंघे के अनुभव के सहारे श्रीलंका मौजूदा संकट से जल्दी से जल्दी उबरने के संकेत देने लगे। अत: श्रीलंका के राष्ट्रपति को अपने लिए एक निश्चित समय-सीमा रखनी चाहिए और उसी के तहत देश की जरूरतों को पूरा करना चाहिए। जैसे, उन्हें बताना चाहिए कि वह देश में तेल या ऊर्जा संकट को कब तक दूर कर देंगे? दो-चार दिनों में ही उन्हें देश को आश्वस्ति का एहसास कराना पड़ेगा। लोग जितने संकटों से घिरे हैं, उनमें निश्चित ही धैर्य कम होगा, पर लोगों को अभी संसद के फैसले का सम्मान करना चाहिए। अगर फिर चुनाव हुए, तो इससे देश पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा। अत: लोगों को संयम रखते हुए ईंधन, भोजन, दवा जैसी बुनियादी चीजों की कमी दूर करने में सहयोगी की भूमिका निभानी चाहिए।
source-hindustan


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