जनता से रिश्ता वेबडेस्क : पहली जुलाई से केंद्र सरकार ने भारत से निर्यात किए जा रहे पेट्रोल, डीजल और विमान ईंधन पर निर्यात कर बढ़ा दिया है। साथ ही भारत में स्वर्ण आयात को नियंत्रित करने के लिए, सोने पर सीमा शुल्क को 10.75 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत कर दिया गया है। कच्चे तेल पर प्रति टन के हिसाब से 23,250 रुपये का उपकर लगाया गया है; यह उपकर कच्चे तेल के आयात पर लागू नहीं होगा। पेट्रोल और डीजल के निर्यात पर विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क/उपकर, पेट्रोल पर छह रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 13 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से लागू किया गया है। विमान ईंधन के निर्यात पर छह रुपये प्रति लीटर के हिसाब से विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क लगाया गया है। इन कदमों से घरेलू ईंधन की कीमतें अप्रभावित हैं।
रूस एवं यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें आसमान छूने लगी हैं। अमेरिका सहित कई यूरोपीय देशों ने रूस पर कई प्रकार के प्रतिबंध लागू कर दिए हैं, जिसके कारण रूस को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल एवं गैस का निर्यात करने में भारी कठिनाई हो रही है। ऐसे समय में भारत रूस की सहायता में आगे आया और रूस से कच्चे तेल का आयात (भारी रियायत एवं कीमत डॉलर में अदा न करते हुए रुपये/रूबल में करने की शर्त पर) करने की ओर अग्रसर हुआ है।
भारत में कच्चे तेल को परिष्कृत कर पेट्रोल एवं डीजल बनाने की बहुत बड़ी क्षमता उपलब्ध है एवं इस कार्य में कुछ निजी कंपनियां भी संलग्न हैं। ये कंपनियां रूस से रियायत पर आयातित कच्चे तेल को पेट्रोल एवं डीजल में परिष्कृत कर अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर निर्यात करके भारी लाभ अर्जित कर रही थीं। इस प्रकार के व्यवहार को 'विंडफॉल गेन' (अप्रत्याशित लाभ) कहा जा रहा है। इस 'विंडफॉल गेन' पर अब केंद्र सरकार ने कर लगा दिया है। साथ ही, इन कंपनियों को कहा गया है कि उनके द्वारा कच्चे तेल को परिष्कृत कर बनाए जा रहे पेट्रोल एवं डीजल के कुछ भाग को भारत में बेचें अन्यथा निर्यात कर अदा करें।
दरअसल जब भारत का व्यापार घाटा लगातार बढ़ता दिखाई दे रहा है, तो यह ध्यान में आया कि यह मुख्य रूप से दो मदों के आयात में हुई भारी वृद्धि के चलते हो रहा है। एक तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है, जिसके कारण भारत में भारी मात्रा में आयात किए जा रहे कच्चे तेल पर काफी विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ रही है। दूसरे, इस वर्ष सोने के आयात में भी भारी वृद्धि दृष्टिगोचर है। अतः स्वर्ण के आयात को कम किए जाने के उद्देश्य से सोने पर भी आयात कर को बढ़ा दिया गया है। इस प्रकार उक्त दोनों निर्णयों से विदेश व्यापार में लगातार बढ़ रहे व्यापार घाटे को कम किया जा सकेगा। केंद्र सरकार द्वारा लिए गए उक्त निर्णयों के पीछे एक और अन्य महत्वपूर्ण कारण भी जिम्मेदार है।
विशेष रूप से कोरोना महामारी के बाद से भारत सहित दुनिया के सभी देशों में वित्तीय घाटा बहुत तेजी से बढ़ा है। इसे नियंत्रित करने के लिए विभिन्न देश अपनी परिस्थितियों के अनुरूप निर्णय ले रहे हैं। मसलन, भारत में वित्तीय वर्ष 2022-23 में खाद्य अनुदान का खर्च लगभग 80,000 करोड़ रुपये से बढ़ जाने की संभावना है। कुल मिलाकर, वित्तीय वर्ष 2022-23 में तीन लाख तीस हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार केंद्र सरकार को वहन करना है। यदि उक्त प्रकार के कर संबंधी फैसले केंद्र सरकार नहीं लेती, तो वित्तीय वर्ष 2022-23 वित्तीय घाटा अनियंत्रित हो सकता है।
यदि वित्तीय घाटा को नियंत्रण में नहीं रखा जाता है, तो मुद्रास्फीति की दर तेजी से बढ़ने लगती है। दूसरे, व्यापार घाटा एवं चालू खाता घाटा को यदि नियंत्रण में नहीं रखा जाता है, तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपये की कीमत कम होने लगती है और देश में आयातित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है। केंद्र सरकार द्वारा निर्यात एवं आयात कर संबंधी लिए गए उक्त निर्णयों की प्रत्येक 15 दिवस पश्चात समीक्षा की जाएगी और यदि आने वाले समय में कच्चे तेल के दाम कम होने लगते हैं, तो इन नियमों में परिवर्तन भी संभव है।
सोर्स-amarujala