'संवेदनहीनता की हद' (संपादकीय, 13 जुलाई) पढ़ा। मध्य प्रदेश के मुरैना में सरकारी अस्पताल में एक दो साल के गरीब आदमी के बच्चे के मरने पर एंबुलेंस नहीं मिलने पर उसके द्वारा शव को एक ठेले पर ले जाने की घटना सरकारी अस्पतालों की बदहाली का पर्दाफाश करने वाली है! गरीब आदमी के बच्चे के मरने पर अस्पताल वालों ने उसे एंबुलेंस उपलब्ध कराने से मना कर दिया, अस्पताल के बाहर खड़े वाहनों ने बच्चे की लाश को ले जाने के लिए जितने पैसे मांगे, वह देने में असमर्थ था, इसलिए वह एक ठेले का प्रबंध करके उससे ही अपने बेटे के शव को अपने घर ले जाने लगा। पुलिस वालों को जब यह सब पता चला तो उन्होंने अस्पताल प्रशासन पर दबाव डालकर एंबुलेंस का प्रबंध किया।
बेशक प्रशासन इस सारे मामले की जांच करा रही है, पर उसमें से निकलेगा क्या? इस किस्म ही घटनाएं मुरैना के अलावा देश के अधिकतर सरकारी अस्पतालों में होती रहती है। सरकार सरकारी अस्पतालों पर हर साल आम लोगों के इलाज के लिए करोड़ों रुपए खर्च करती है, इसके बावजूद मरीजों को आवश्यक सुविधाएं और दवाएं नहीं मिल पातीं। वरिष्ठ डाक्टर कई बार अस्पताल नहीं आते और जूनियर डाक्टर कई बार आपरेशन थिएटर गए होते हैं तो कई बार चाय पीने। नतीजतन, प्रशिक्षु डाक्टर मरीजों को देखते हैं, जिन्हें अपने काम का पर्याप्त अनुभव नहीं होता।
इन अस्पतालों में बहुत बार संसाधनों का अभाव होता है, कर्मचारी मरीजों की सहायता नहीं करते, मरीजों के साथ गए रिश्तेदार ही सारा काम संभालते हैं। कई बार एक्स-रे मशीन या अल्ट्रासाउंड मशीन आदि ठीक नहीं होती और मरीजों को बाहर से पैसे खर्च करके काम कराना पड़ता है। अस्पताल में जरूरी दवाओं की हकीकत छिपी नहीं है। शौचालय और पानी की बुनियादी सुविधाओं की तस्वीर सब जानते हैं। अच्छा-भला आदमी भी वहां जाकर बीमार हो जाए। अक्सर अस्पतालों में एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं होती। जिन सरकारी अस्पतालों पर सरकार हर साल करोड़ों रुपए खर्च करती है उसका फायदा गरीब आदमियों की बीमारियों का इलाज करने में कब आएगा? सरकार धन खर्च करने के साथ-साथ व्यवस्था पर ध्यान कब देगी?
निजी अस्पतालों में इलाज कराना आम लोगों के लिए इतना महंगा है कि इलाज करने के बदले में जमीन-जायदाद और घर बिक जाए। अगर ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की बात की जाए तो पता नहीं, वे साधारण और जरूरतमंद लोगों के लिए कितने उपयोगी हैं। केंद्र तथा राज्य सरकारों को मुरैना की घटना से सबक लेते हुए देश के सरकारी अस्पतालों की स्थिति को सुधारने के लिए सरकारी अस्पतालों को जन उपयोगिता के लिहाज से बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए।
शाम लाल कौशल, रोहतक, हरियाणा