जनता से रिश्ता : अमूमन हर रोज देश में सड़कों पर होने वाले हादसों में जो लोग मारे जाते हैं, उनमें से ज्यादातर की जान बचाई जा सकती थी, अगर सिर्फ कुछ बातों का ध्यान रखा जाता। लेकिन हकीकत यह है कि न तो सरकारी महकमे सड़कों के सफर को सुरक्षित बनाने के इंतजामों और नियमों को लेकर गंभीर रुख अपनाते हैं और न ही आम लोगों के स्तर पर अपने सुरक्षित सफर लेकर पर्याप्त सजगता दिखाई देती है।
नतीजतन, बहुत मामूली वजहों से सड़कों पर होने वाले हादसों में लोगों की जान तक चली जाती है। जबकि अगर तय नियमों को लेकर लोगों की सजगता अव्वल तो हादसे की स्थिति से बचा सकती है और अगर किसी स्थिति में चूक हो भी गई तो कम से कम व्यक्ति की जान बच सकती है। पर अफसोस की बात यह है कि आम लोगों के स्तर पर बरती गई लापरवाही जहां हादसों का एक बड़ा कारण बनती है, वहीं संबंधित महकमे भी सड़क यातायात के नियम-कायदों को लेकर कई बार ढीला रवैया अख्तियार करते हैं। नियमों के पालन को लेकर इस तरह की उदासीनता अक्सर हादसों में तब्दील हो जाती है और नाहक ही लोगों की जान चली जाती है।
दुनिया की जानी-मानी पत्रिका 'द लांसेट' में इस मसले पर केंद्रित एक अध्ययन में बताया गया है कि भारत में सड़क सुरक्षा के उपायों में सुधार लाकर हर साल तीस हजार से ज्यादा लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है। अध्ययन के मुताबिक, सड़कों पर जानलेवा हादसों के लिहाज से चार प्रमुख खतरे हैं, जिनमें वाहनों की बेलगाम या तेज रफ्तार, शराब पीकर गाड़ी चलाना, हेलमेट नहीं पहनना और सीट बेल्ट का इस्तेमाल नहीं करना शामिल हैं।
अध्ययन में यह तथ्य उभर कर सामने आया कि सड़कों पर वाहनों की गति की जांच और लगाम लगाने के लिए जरूरी कदम उठाने से भारत में बीस हजार से ज्यादा लोगों की जान बच सकती है। वहीं केवल हेलमेट पहनने को लोग अपने लिए अनिवार्य मानने लगें और यातायात महकमे की ओर से इस नियम का पालन सुनिश्चित किया जाए तो इससे पांच हजार छह सौ तिरासी जिंदगी बचाई जा सकती है। इसी तरह, वाहनों में बैठ कर सफर करने वाले लोगों के बीच सीट बेल्ट के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर तीन हजार से अधिक लोगों को मरने से बचाया जा सकता है। इसके अलावा, शराब पीकर वाहन चलाने की वजह से सड़क हादसों की कैसी तस्वीर बनती है, यह किसी से छिपा नहीं है।
गौरतलब है कि हर साल दुनिया भर में सड़क हादसों में साढ़े तेरह लाख से ज्यादा लोगों की जान चली जाती है। इसमें से करीब नब्बे फीसद मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। अगर सड़क सुरक्षा के कुछ उपायों को ही ठीक से अमल में लाया जा सके, तो मरने वाले कुल लोगों में से लगभग चालीस फीसद तक लोगों को मरने से बचाया जा सकता है।
सड़क पर वाहन चलाने से संबंधित नियम-कायदों का सख्ती से पालन न केवल दूसरे बहुत सारे लोगों के सफर को सुरक्षित बना सकता है, बल्कि गाड़ी चलाने वाला अपने जिंदा रहने को लेकर भी निश्चिंत रह सकता है। विडंबना यह है कि आजकल महंगी गाड़ियों को सड़कों पर तेज रफ्तार में चलाना एक फैशन मान लिया गया है। सीट बेल्ट नहीं पहनने या यहां तक कि शराब पीकर वाहन चलाने को शान की तरह देखा जाता है। दुपहिया वाहनों पर भी कई लोग हेलमेट अपनी सुरक्षा के मद्देनजर नहीं, बल्कि बोझ की तरह लगाते हैं। जबकि इसी तरह की साधारण लापरवाही अपनी या दूसरों की मामूली चूक के समय किसी के लिए जानलेवा साबित होती है।
सोर्स-jansatta