सेनापतियों के उक्त ऐलान के बाद सड़कों की बुझती आग कई विपक्षी नेताओं की जुबान पर आ विराजी और वे एक से एक शोले उगलने लगे! एक कांग्रेसी नेता ने तो यहां तक कह दिया कि जो हिटलर की चाल चलेगा, वो हिटलर की मौत मरेगा? इसी क्रम में एक मुसलिम नेता ने हिंसा को सही ठहराते हुए कहा कि अगर ये लड़के सडकों पर न उतरे होते, क्या इनकी कोई सुनता? जब नाम 'अग्निपथ' रखा तो 'आग' लगनी ही थी… फिर एक बड़े मुसलिम नेता जी ललकारते रहे : कौन होती है सेना? सेना को क्यों सामने किया जा रहा है? फिर एक बड़ी कांग्रेसी नेता कहती रहीं कि यह यह योजना देश के युवाओं को मार डालेगी… फिर एक छोटे कांग्रेसी ने ज्ञान बघारा कि चार साल बाद ये माओवादी हो जाएंगे।
एक बड़े कांग्रेसी ने फरमाया कि इन युवाओं को संघ में शामिल होने के लिए मजबूर किया जाएगा… फिर, एक बड़बोले कांग्रेसी बोले कि युवाओं को 'शूट टू किल' की ट्रेनिंग दी जाएगी, कि फिर एक मुसलिम ने कह दिया कि सेना के बाद ये 'सुपारी किलर' बन जाएंगे, फिर एक दलित नेता ने ज्ञान बढ़ाया कि अग्निपथ 'नव नाजी' आंदोलन को जन्म देगा…भइए! ये 'हिटलर' भी कैसा है कि सभी इतना कुछ बोल गए और अब तक किसी का कुछ न बिगड़ा! बहरहाल, जब आग ठंडायमान होने को थी, तभी एक बड़े बीजेपी नेता ने यह कह कर आग में घी डाल दिया कि अगर भाजपा आफिस में चौकीदार रखना हो तो अग्निवीरों को रखूंगा। फिर एक और भाजपा नेता ने चार साल बाद अग्निवीरों को 'बार्बर' बनने की बात कह दी और विपक्ष में फिर से जान पड़ गई कि देखा, ये हैं इनके असली इरादे!
इसी तरह की खबरों और बहसों में यह भी साफ हुआ कि इन 'आल इंडिया प्रोटेस्टों' के पीछे कौन था? फिर एक दिन मीडिया विपक्ष पर 'पाजिटिवली' मेहरबान हुआ और वह विपक्षी दलों की उन मीटिंगों को लाइव खबरें देता रहा, जिनमें 'प्रेसीडेंट पद' के लिए नया नाम तय किया जाना था।मीटिंगों में पहले शरद पवार का नाम आया, जिसे उन्होंने सीधे अस्वीकार कर दिया, फिर फारुक अब्दुल्ला का आया और उन्होंने भी अस्वीकार कर दिया, फिर गोपालकृष्ण गांधी का नाम आया, जिसे उन्होंने ने भी अस्वीकार कर दिया। अंत में यशवंत सिन्हा का नाम आया, जिन्होंने स्वीकार कर लिया!
लेकिन जब तक यह खबर चर्चा में आती, तब तक महाराष्ट्र की 'महाअघाड़ी' सरकार का बंटाढार होता नजर आया और हिंदुत्व का एजेंडा फिर शीर्ष पर आ गया। शिवसेना के चौबीस विधायकों को लेकर शिवेसना के नेता और मंत्री एकनाथ शिंदे ज्यों ही सूरत के पांच सितारा में गए, त्यों ही वे खबरों के केंद्र में आ गए। उनके विचारों के समर्थक विधायकों की संख्या बढ़ते-बढ़ते अड़तीस तक पहुंच गई और उद्धव के साथ सोलह-सत्रह ही रह गए। चैनलों में हल्ला रहा कि सरकार अब गई कि तब गई।इस झटके के बाद उद्धव अचानक 'कोरोना पाजिटिव' हो गए और राज्यपाल के 'कोरोना पाजिटिव' होने की खबरें रहीं। फिर उद्धव ठाकरे ने शिवसैनिकों को 'फेसबुक' से संबोधित करते हुए कहा कि मैं इस्तीफा देने को तैयार हूं… शिवसैनिक मुझसे बात तो करें… लेकिन इसके बाद भी शिवसेना के कई और एमएलए गुवाहाटी जाते दिखे! गुरुवार की सुबह कई चैनलों ने खबर दी कि उद्धव के पास कुल सोलह विधायक बचे हैं
निंदक रोते रहे कि यह भाजपा का षड्यंत्र है, लेकिन कभी कांग्रेस भी यही करती थी। कई चैनलों पर कई टिप्पणीकारों ने इस संकट के लिए संजय राउत को जिम्मेदार ठहराया और यह स्पष्ट किया कि असल मुद्दा सीएम पद का नहीं, शिवेसना द्वारा 'हिंदुत्व' की विचारधारा से दगा करने का है।हाय! महाबली का कैसा पतन!
लेकिन वाह रे भाजपा और एनडीए कि इसी बीच झारखंड की राज्यपाल आदिवासी द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार घोषित करके विपक्ष के साथ ही 'खैला' कर दिया!source-jansatta