जल धाराओं के प्रति समाज की बेपरवाही की बानगी

Update: 2022-06-15 14:46 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क :जिस राज्य में बड़ी आबादी के जीवकोपार्जन का जरिया खेती या जंगल हो, वहां नदियों का लुप्त होना असल में मानव-सभ्यता की अविरल धारा में व्यवधान की तरह है। जल धाराओं के प्रति समाज की बेपरवाही की बानगी है, झारखंड की राजधानी रांची की कभी जीवन-रेखा कही जाने वाली हरमू नदी। यह सुवर्णरेखा नदी की बहुत छोटी सहायक नदी है। जलवायु परिवर्तन की मार से झारखंड भी अछूता नहीं है और यहां अनियमित और कम बरसात दर्ज की जा रही है।इसका सीधा असर हरमू के अस्तित्व पर पड़ा। अब महज चार महीने इसमें जल रहता है, शेष दिनों में नगर का गंदा निस्तार ही इसमें तैरता है। जाहिर है, कुछ दशकों में इसे एक नाला घोषित कर दिया जाएगा। अगर हरमू नदी के उद्गम स्थान को देखा जाए, तो वहां पत्थरों का भी कटाव हो गया है। इसके चलते इस नदी पर खतरा मंडरा रहा है। राज्य विभाजन से पहले झारखंड में छोटी-बड़ी करीब 141 सदानीरा नदियां थीं।

अब इनमें से कई तो गुम गईं और अधिकांश गर्मी शुरू होते ही लुप्त हो जाती हैं और इसकी सबसे बड़ी वजह है, नदियों के किनारे बेतरतीब ढंग से अवैध बसावट। हरमू जैसी शहरी नदी के बहाव क्षेत्र को भरकर अतिक्रमण कर लिया गया है। वर्ष 1928 और 1932 के नक्शे को अगर देखा जाए, तो रांची में छोटी-छोटी नदियों का जाल था, जो अब कंकरीट में समाया दिखता है। इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि वर्ष 1962 तक कांके जलाशय के करीब एक प्राकृतिक झील थी, जिस पर जल वितरण के लिए पंप लगा था और वहां से दो नदियां निकलती थीं–जुमार और पोटपोटो।
ये दोनों रांची शहर के बीच से इठलाती-घूमती अपने रस्ते चलते हुए बोरियो के पास सुवर्णरेखा में मिल जाती थीं। जुमार को रेत खनन ने मार डाला, अब यहां पूरे साल सूखा ही रहता है, जबकि पोटपोटो को अतिक्रमण और कूड़ा निकासी चाट गया। दोरंदो के नाम से लोकप्रिय भुसूर नदी 25 किलोमीट लंबाई तक रांची शहर में ही घूमती है। इसे अतिक्रमण, गंदगी और कूड़े ने लगभग लुप्त कर दिया है। रांची शहर में हरमू नदी की चौड़ाई 25 मीटर से घट कर कई स्थानों पर एक मीटर से भी कम हो गई है।रांची नगर-निगम की ओर से हरमू नदी के सौंदर्यीकरण के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जा चुके हैं। कई स्थानों पर चेकडैम भी बनाये जा रहे हैं, ताकि नदी के अस्तित्व को बचाया जा सके, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद हरमू नदी को पुनर्जीवित करने का प्रयास सफल होता नहीं दिख रहा है। बरसात में दो-तीन महीने को छोड़कर अन्य दिनों में इसकी स्थिति एक बड़े नाले की तरह हो जाती है।
आबादी बढ़ने के साथ ही नदी के आसपास के मोहल्लों से निकलने वाला गंदा पानी और गंदगी, दोनों ही इस नदी में गिराए जाने लगे, जिसकी वजह से आज यह नदी पूरी तरह दूषित हो चुकी है। नदी का पानी तो काम का है नहीं, इसके कारण दूर-दूर तक भूजल भी जहरीला हो चुका है। हरमू मुक्तिधाम और हरमू फल मंडी के पास दो सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए गए हैं। इसके बावजूद नदी में गंदगी और गंदे पानी को गिरने से नहीं रोका जा सका है।मुक्तिधाम के पास नदी में कुछ दूर तक पाथ-वे बनाया गया है। हरमू बाइपास पुल के पास नदी के ढलान पर घास और सजावटी पौधे भी लगाए गए, लेकिन रख-रखाव के अभाव में ये पौधे सूखने लगे हैं। ग्रामीणों ने नदी में जगह-जगह मिट्टी से बांध बनाकर पानी रोका है और इस तरह बने छोटे जलाशयों में लोग नहाते हैं, कपड़ा-बर्तन धोते हैं और मवेशियों को पानी पिलाते हैं। जब तक नदी में पानी रहता है, तब तक आसपास के खेतों की सिंचाई भी इसी से होती है।
एक बात समझनी होगी कि रांची शहर का अस्तित्व सड़क, भवन या पुल से नहीं, बल्कि हरमू, करमा जैसी नदियों से है- ये नदियां केवल जल मार्ग नहीं होतीं, शहरों में बढ़ती गर्मी को नियंत्रित करने, भूजल का स्तर बनाए रखने और साफ हवा का नैसर्गिक साधन होती हैं। यदि मनुष्य जीवन को स्वस्थ रखना है, तो हरमू सहित सभी नदियों का अविरल तथा स्वच्छ होना अनिवार्य है।
सोर्स-amarujala

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