नई दिल्ली : दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने माइक्रोसाफ्ट तकनीकी सहायता के नाम पर विदेशियों को ठगने वाले फर्जी कॉल सेंटर का पर्दाफाश किया है. इस मामले में कॉल सेंटर के मालिक सहित छह आरोपितों को गिरफ्तार किया गया है. आरोपित विदेश में रहने वाले लोगों को पॉप-अप भेज उनके डिवाइस हैक हो जाने और मैलवेयर वायरस से संक्रमित हो जाने की बात बताते थे. फिर माइक्रोसाफ्ट से तकनीकी सहायता प्रदान करने के बहाने उनसे ठगी करते थे. धोखाधड़ी की राशि को वे क्रिप्टो-मुद्रा में परिवर्तित करवा कर नगद प्राप्त कर लेते थे. पुलिस ने सात लैपटाप, सात हेडफोन, सात मोबाइल फोन, 7.10 लाख रुपये नकद, एक इंटरनेट राउटर आदि बरामद किए हैं.
डीसीपी के मुताबिक गिरफ्तार किए आरोपियों के नाम अभिषेक छाबड़ा ( रमेश नगर, दिल्ली ), राहुल गुप्ता (गोयला डायरी गांव, दिल्ली), पुष्कर राज (उत्तम नगर), आदित्य धनखड़ (नोएडा), अर्पित चौधरी (बहादुरगढ़, हरियाणा), आशीष वासवानी (रोहिणी) है. इनकी गिरफ्तारी से पुलिस ने पश्चिम विहार में चल रहे फर्जी अंतरराष्ट्रीय कॉल सेंटर का भंडाफोड़ किया है, जो माइक्रोसाफ्ट से तकनीकी सहायता देने के बहाने अमेरिकी नागरिकों से ठगी करते थे.
18 जुलाई को पुलिस को सूचना मिली कि पश्चिम विहार में एक फर्जी कॉल सेंटर चलाया जा रहा है, जो माइक्रोसाफ्ट और एपल के यूजर्स को तकनीकी सहायता देने के बहाने अमेरिकी नागरिकों को ठगता है. एसीपी रमेश लांबा और इंस्पेक्टर मोहन की टीम ने जब कॉल सेंटर में छापेमारी की तो आरोपित फर्जी कॉल सेंटर संचालित करते हुए पाए गए. वहां से विदेश में अनजान लोगों को कॉल किए जा रहे थे. अभिषेक छाबड़ा कॉल सेंटर का मालिक है, जो एक माह से कॉल सेंटर चला रहा था. वह कॉमर्स से ग्रेजुएशन कर चुका है. आरोपित अमेरिकी नागरिकों के कंप्यूटर पर पॉप-अप भेजकर बताते थे कि उनके सिस्टम से छेड़छाड़ की गई है और उन्हें माइक्रोसाफ्ट द्वारा तकनीकी सहायता के लिए दिए गए नंबर पर काल करने के लिए कहा जाता था.
पीड़िताें द्वारा फोन करने पर कॉल सेंटर पर एक्स-लाइट एप के जरिए कॉल आती थी. आरोपित माइक्रोसाफ्ट तकनीकी सहायता टीम से होने का दावा कर उन्हें अल्ट्रा व्यूअर या एनी डेस्क जैसे एप्लिकेशन के माध्यम से अपने कंप्यूटर का रिमोट एक्सेस देने के लिए प्रेरित करते थे. उसके बाद वे पीड़ितों को बताते थे कि उनके सिस्टम में मैलवेयर, स्पाइवेयर आदि कई दुर्भावनापूर्ण प्रोग्राम पाए गए हैं. जबकि वास्तव में ऐसी कोई समस्या नहीं होती थी.
वे पीड़ितों को सावधान करते हुए बताते थे कि यदि वे तुरंत ठीक नहीं कराएंगे तो उनकी खातों से रकम गायब हो सकते हैं. जिससे पीड़ित वित्तीय सुरक्षा के डर से आरोपि द्वारा मांगी गई राशि का भुगतान करने के लिए सहमत हो जाते थे. जिसके बाद आरोपि उपहार कूपन, गूगल पेय आदि के जरिए पैसे मंगवा कर उसे ग्रे मार्केट के माध्यम से भुना लेते थे. उक्त कैशर को "ब्लाकर" कहा जाता है. "ब्लाकर" कूपन की बिक्री करता है और पैसे से क्रिप्टो-मुद्रा खरीदता है. बाद में वे क्रिप्टो को कैश में बेचकर इसे भुना लेते थे. भुगतान प्राप्त करने पर आरोपित मैलवेयर वायरस आदि को साफ करने का दिखावा करते थे. जिससे पीड़िताें को लगता था कि उसे माइक्रोसाफ्ट से वैध तकनीकी सहायता मिल रही है. पुलिस का कहना है कि सिस्टम से बरामद डाटा के अनुसार आरोपितों द्वारा एक करोड़ रुपये से अधिक की ठगी की गई है.