यमुना ने दिल्ली को जीवनदायिनी भूदृश्य दिया, लेकिन आज यमुना-दिल्ली के रिश्ते की डोर टूटने लगी है, तभी राजधानी की जीवन रेखा मिट रही है। यमुना मृतप्राय हो चली है। पारिस्थितिकी तौर पर तो मृत हो चली है। फ्लड प्लेन की सिकुड़ने के क्रम में आशंका इसके मृत हो जाने की भी जताई जा रही है।
वह यमुना ही थी, जिसने कभी दिल्ली की बसावट तय की थी। यमुना ने दिल्ली को जीवनदायिनी भूदृश्य दिया, लेकिन आज यमुना-दिल्ली के रिश्ते की डोर टूटने लगी है, तभी राजधानी की जीवन रेखा मिट रही है। यमुना मृतप्राय हो चली है। पारिस्थितिकी तौर पर तो मृत हो चली है। फ्लड प्लेन की सिकुड़ने के क्रम में आशंका इसके मृत हो जाने की भी जताई जा रही है। चीजें जिस तरह खराब हो रही हैं, उसमें बिन यमुना दिल्ली से जुड़ा सवाल मौजूं हो जाता है, तो बात इसी मसले पर कि अगर यमुना नहीं होगी तो दिल्ली का क्या होगा?
तो दो करोड़ लोग होंगे जलवायु परिवर्तन शरणार्थी : राजेंद्र सिंह
दिल्ली भी आज बेपानी होने की तरफ बढ़ रही है। इसका शोषण हो रहा है। यह खत्म होने के कगार पर है। ऐसा भी नहीं कि इसमें सुधार संभव नहीं है। सरकार ने हजारों करोड़ रुपये खर्च किए। फिर भी, यमुना की सेहत सुधरी नहीं है। इसकी वजह यह है कि बीमारी कुछ और है, दवा किसी दूसरे रोग की चल रही है। यमुना की सफाई का काम ठेकेदारों को रोजगार देने के लिए हो रहा है। यह जीवन देने का काम नहीं है।
जब दिल्ली में यमुना नहीं होगी तो करीब दो करोड़ लोग जलवायु परिवर्तन शरणार्थी होंगे। मैंने दुनिया के करीब 120 देशों में इस तरह के शरणार्थियों को देखा है। अमेरिका, यूरोप समेत दूसरे सभी देशों में इनको बोझ माना जाता है।
भयंकर गर्मी, ठंड और बाढ़ से जूझेगी दिल्ली
यमुना जिए अभियान से जुड़े मनोज मिश्र का कहना है कि अगर हम दिल्ली में यमुना के नहीं होने की बात कर रहे हैं तो पहले हमें समझना होगा कि यह कौन सी यमुना है? अगर यह सिर्फ दिल्ली-एनसीआर, पल्ला से कालिंदी कुंज, फरीदाबाद और आगे पलवल तक की यमुना है तो इसके चले जाने से यहां भयंकर गरमी, ठंड और बाढ़ आएगी। भूजल भी नहीं बचेगा। दूसरी तमाम चीजें देने के साथ यमुना थर्मल रेगुलेशन का काम करती है। इसका फ्लड प्लेन दिल्ली की ठंड व गरमी को मॉडरेट करता है। यमुना का इतना बड़ा फ्लड प्लेन कहीं नही है। अगर यमुना नहीं होती तो दिल्ली रेगिस्तान होती। पिछले मानसून में दिल्ली ने इसका थोड़ा अनुभव कर भी लिया है। यह यमुना की नहीं, दिल्ली के अपने पानी की बाढ़ होगी।
दिल्ली में अगर आज पानी की त्राहि-त्राहि नहीं है तो उसकी मुख्य वजह यमुना है। क्योंकि जब भी यमुना में अच्छी बाढ़ आती है, तो वह दिल्ली के जलभृत (एक्यूफर) को भरकर चला जाता है। इससे पानी निकालकर दिल्ली का बड़ा हिस्सा अपनी प्यास बुझाती है।
भूदृश्य में होगा बड़ा उलटफेर : फैयाज खुदसर
वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ फैयाज खुदसर का कहना है कि अभी यह सवाल काल्पनिक लग सकता है। लेकिन इसका हकीकत में बदलना संभव भी है। यह हमारी-आपकी उस कोशिश से तय होगा कि हम यमुना से साथ क्या करते हैं? फ्लड प्लेन का अगर हम अतिक्रमण करते जाएंगे तो और चाहे जो कुछ भी रहे, यकीनन यमुना नहीं बचेगी। असल में फ्लड प्लेन में ही नदी की नर्सरी, उसकी किडनी के तौर काम करने वाली नम भूमियां होती हैं।
इनमें बारिश से ज्यादा नदी की बाढ़ का पानी जमा होता है। यह साल भर नमी और जैव विविधता बचाए रखती हैं और बाढ़ के दौरान उसे नदी को लौटा देती है। पहले फ्लड प्लेन नम भूमियों से भरा होता था। अब यमुना के किनारों पर स्टेडियम, मेट्रो स्टेशन/पार्किंग, चौड़ी सड़कें और फ्लाईओवर का जाल और सचिवालय है। कभी यह दिल्ली यमुना की वजह से बसी थी। आज यमुना का भविष्य दिल्ली के हाथ उजड़ रहा है। अब आते हैं मूल सवाल नदी के न बचने का, तो दिल्ली में अभी ही कहां नदी बची है?
नदी शहर का सबसे बड़ा ड्रेनेज भी है। शहरी जरूरत से ज्यादा पानी वह समुद्र तक पहुंचा देती है। अब अगर यमुना अपने मौलिक रूप में नहीं होगी तो सारा सीवेज निचले इलाके में जमा होता रहेगा। और एक स्थिति यह आएगी कि जब बसावट अरावली पर सिमट जाएगी, जिसके चारों ओर शहर का सीवेज भरा होगा।