108 अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के बाद भी कानूनी फासले कम करने में 268 साल लगेंगे

Update: 2023-03-05 15:18 GMT
नई दिल्ली, (आईएएनएस)| क्या आप जानते हैं कि आज से लगभग 108 साल पहले जिस उद्देश्य से 'अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस' मनाने की शुरुआत की गई थी, उसकी पूर्ति आज भी नहीं हो सकी है। महिलाओं-लड़कियों को इन कानूनी फासलों को कम करने में अभी 268 साल और लग सकते हैं।
8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इस साल हम 109वां अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं और जब पहली बार अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया था, तब इसकी थीम थी 'अतीत का जश्न, भविष्य की योजना'। अब हर साल इस एक नई थीम के तहत इसे मनाया जाता है। इस साल इसकी थीम है 'इक्विटी को गले लगाओ'। इक्विटी का मतलब, एक समावेशी दुनिया बनाना है। लैंगिक समानता पर ध्यान हर समाज के डीएनए का हिस्सा होना चाहिए। इस वर्ष की थीम सक्रिय रूप से इसका समर्थन करने और इसे गले लगाने के लिए निर्धारित की गई है। हालांकि इतने वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने और महिला संबंधी जागरूकता फैलाने के बाद भी ये अपने उद्देश्य को पूरा नहीं कर सका।
दरअसल, इस खास दिन को मनाने का एकमात्र मकसद महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिलाना है। किसी भी क्षेत्र में बिना किसी भेदभाव के हर महिला को सभी अधिकार मिलें। महिलाओं के अधिकारों की ओर ध्यान आकर्षित करने और लोगों को जागरूक करने के लिए इस दिन कई कार्यक्रम और अभियान आयोजित किए जाते हैं।
वहीं अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत कब हुई थी, इसके इतिहास में जाएं तो एक श्रमिक आंदोलन से इसके उभरने की जानकारी मिलती है। इसकी पहल 1908 में हुई, जब एक साथ 15,000 महिलाओं ने काम के घंटे कम करने की मांग को लेकर न्यूयॉर्क शहर की सड़कों पर प्रदर्शन किया। इस आंदोलन के एक साल बाद अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने 8 मार्च को पहला राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित कर दिया।
इसके बाद क्लारा जेटकिन ने 1910, कोपेनहेगन में कामकाजी महिलाओं के लिए आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा। उस सम्मेलन में 17 देशों की 100 महिलाओं ने भाग लिया था। इन सभी उनके प्रस्ताव को स्वीकार कर, मंजूरी दे दी और फलस्वरूप पहली बार 1911 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में मनाया गया था।
इसके बाद 1917 में युद्ध के दौरान रूस की महिलाओं ने 'रोटी और शांति' की मांग की थी। एक महिला हड़ताल ने सम्राट निकोलस को गद्दी छोड़ने के लिए मजबूर किया और इसके बाद की अनंतिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया।
उस समय रूस में जूलियन कैलेंडर का प्रयोग होता था। जिस तारीख को महिलाओं ने हड़ताल का आह्वान किया था वह 23 फरवरी थी। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह दिन 8 मार्च था और इसलिए इस दिन अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है।
हालांकि तकनीकी रूप से इस साल हम 109वां अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं। साल 1975 में संयुक्त राष्ट्र ने इसे एक थीम के साथ वार्षिक उत्सव के रूप में मनाना शुरू किया। उस समय इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को आधिकारिक मान्यता मिली थी।
इस साल 8 मार्च को दुनिया 109वां अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाएगी, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की 2022 में जारी रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 64 देशों में महिलाएं रोजाना 1640 करोड़ घंटे बिना वेतन के काम करती हैं। वहीं एशिया और प्रशांत क्षेत्र में बिना वेतन के महिलाएं पुरुषों की तुलना में 4.1 गुना ज्यादा काम करती हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, देश के ग्रामीण क्षेत्रों में पांच और शहरी क्षेत्रों में 30 फीसदी महिलाएं घर के काम के साथ नौकरी भी कर रही हैं। ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था में पुरुषों की तुलना में ऐसी महिलाओं की भी अहम भूमिका है।
बिना वेतन काम करने के बावजूद आईआईएम अहमदाबाद की फरवरी में जारी रिपोर्ट के अनुसार आराम करने के मामले में भी महिलाएं पिछड़ गई हैं। पुरुषों की तुलना में अच्छा समय बिताने के मामले में महिलाएं 24 फीसदी पीछे हैं। घर पर काम करने वाली दस में से सात महिलाएं खुद को पूरा समय नहीं दे पाती हैं। इसका कारण उन्हें आए दिन स्वास्थ्य संबंधी परेशानी भी रहती है।
लिंग के आधार पर भेदभाव को खत्म करना और महिलाओं और लड़कियों को मिलने वाली कानूनी सुरक्षा में खामियों को दूर करने के मकसद से लैंगिक बराबरी संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में बराबर वेतन, कार्यस्थल पर मान्यता और कार्यस्थल के अंदर और बाहर कानूनी अधिकार दिलाने पर काम कर रहा है।
फिलहाल भारत में ऐसा कोई प्रभावी कानून नहीं है जो कार्यस्थल पर बराबर कार्य के लिए बराबर वेतन का अधिकार देता हो। वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम की ताजा जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 में भारत 146 देशों में 135वें नंबर पर है।
इसी के मद्देनजर यूएन वीमेन (संयुक्त राष्ट्र का महिलाओं के लिए संगठन) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक बाकी दुनिया की तरह ही भारत भी साल 2030 तक लैंगिक बराबरी हासिल करने के रास्ते पर नहीं है और यदि हालात मौजूदा गति से सुधरे, तो भेदभावपूर्ण कानूनों को हटाने और महिलाओं और लड़कियों को कानूनी बराबरी देने में मौजूदा फासलों को कम करने में अभी 268 साल और लग सकते हैं।
--आईएएनएस
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