महासमुंद: यह कहानी छोटे से गांव भोरिंग की दिव्यांग की है। जिसका नाम लक्षवंति है। पाँच बहनों में वह भी एक है, जब वह दो वर्ष की थी तभी से ही पोलियो की शिकार हो गई। अपनी दिव्यांगता की वजह से निर्धारित बाधाओं के बावजूद अपने जीवन को पूरी उमंग और संघर्ष के साथ जीने वाली थी। उसने 12 वीं तक पढ़ाई गांव के स्कूल से की। उसका पालन-पोषण नाना-नानी द्वारा किया जा रहा था। तभी नाना के निधन के बाद उसके ऊपर दुःखो का पहाड़ टूट पड़ा और उसकी आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई। वह बताती है कि जीवन-यापन करने के लिये छोटी-मोटी सिलाई एवं हल्की मजदूरी करनी पड़ती थी। जो गुजारे के लिए काफ़ी नहीं था।
एक रोज़ ज़िला समाज कल्याण विभाग के द्वारा दिव्यांगजन/प्रमाणीकरण/नवीनीकरण एवं सेवा सुविधा शिविर ग्राम पंचायत खल्लारी में आयोजित था। शिविर में मौजूद अधिकारियों से योजना की जानकारी लेकर महासमुंद में उप संचालक समाज कल्याण से परेशानी साझा की उन्होंने पूरा सहयोग किया। नियमानुसार कार्यवाही करते हुए उसे विभागीय योजनांतर्गत पेंशन एवं सहायक उपकरण उपलब्ध कराया। साथ ही जब लक्षवंति ने अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी दी और उनसे काम पर रखने हेतु अनुरोध किया।
जिला प्रशासन कि मदद से समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित शासकीय बहुविकलांग विशेष विद्यालय महासमुन्द में स्वच्छक पद के किए व्यक्ति की ज़रूरत थी। मुझे इस काम के लिए चुना गया। उसे महिला स्वच्छक के पद पर कार्य करने का मौक़ा दिया। वह सितंबर 2022 से दैनिक मजदूरी दर पर कार्यरत है। अब उसकी आर्थिक स्थिति पहले से बहुत अच्छी हो गई है। उसने अपनी बचत राशि में से चार पहिये वाली स्कूटी भी खरीद ली। जिससे उसका जीवन और भी आसान हो गया और समाज में सम्मान पूर्वक जीवन व्यतीत करते हुये आर्थिक/सामाजिक पुनर्वास की ओर अग्रसर है। शासन की योजना का लाभ उठाकर अब वह खुशहाल जीवन जी रही हैं।
लक्षवंति की कहानी लोगों के दिलों में प्रेरणा की भावना जगाने लगी। उसने दिखाया कि किसी भी शारीरिक रूप से विकलांगता स्थिति के बावजूद, मनुष्य का मान और सम्मान कभी नहीं हार सकती है। उसके प्रयासों ने संघर्ष की कहानी को जीवंत किया और लोगों को दिखाया कि हम अपने बलबूते व शासन की योजनाओं का लाभ उठाकर सम्मान से जीवन जी सकते है।